Beautiful
Depiction of Dawn (Usha)  
in
Tapasvini-Kavya of Poet Gangadhar Meher 
*
(Extracted from Tri-lingual Translations of Tapasvini 
By  Dr. Harekrishna Meher) 
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Original
Odia Poem from Canto-IV 
composed
in mellifluous Chokhi-Raga :   
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मङ्गळे अइला
उषा    
बिकच-राजीब-दृशा
जानकी-दर्शन-तृषा  
हृदये बहि  ।    
कर-पल्लबे नीहार-     
मुक्ता धरि उपहार
सतीङ्क बास बाहार   
प्राङ्गणे रहि
 ।
कळकण्ठ-कण्ठे
कहिला, 
‘दरशन दिअ सति
 ! राति पाहिला ॥’ (१)
*
अरुण कषाय बास     
कुसुम-कान्ति-बिकाश 
प्रशान्त रूप बिश्वास  
दिअन्ति मने  ।  
केउँ य़ोगेश्वरी आसि    
मधुर भाषे आश्वासि 
डाकुछन्ति दुःखराशि   
उपशमने  । 
देबा पाइँ नब जीबन, 
स्वर्गुँ कि ओह्लाइछन्ति  मर्त्त्य भुबन ॥ (२)  
*
समीर सङ्गीत गाए   
भ्रमर बीणा बजाए  
सुरभि नर्त्तने थाए   
उषा-निदेशे  ।  
कुम्भाटुआ होइ भाट   
आरम्भिला स्तब पाठ 
कळिङ्ग अइला पाट-   
मागध बेशे  ।  
लळित मधुरे कहिला, 
‘उठ
सती-राज्य-राणि !  राति पाहिला ॥’ (३) 
*
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Hindi
Translation 
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समंगल आई सुन्दरी 
प्रफुल्ल-नीरज-नयना उषा,
हृदय में ले गहरी
जानकी-दर्शन की तृषा ।
नीहार-मोती उपहार लाकर पल्लव-कर में,
सती-कुटीर के बाहर
आंगन में खड़ी होकर
बोली कोकिल-स्वर में,
‘दर्शन दो, सती अरी !
बीती विभावरी ॥’ (१)
*
प्रफुल्ल-नीरज-नयना उषा,
हृदय में ले गहरी
जानकी-दर्शन की तृषा ।
नीहार-मोती उपहार लाकर पल्लव-कर में,
सती-कुटीर के बाहर
आंगन में खड़ी होकर
बोली कोकिल-स्वर में,
‘दर्शन दो, सती अरी !
बीती विभावरी ॥’ (१)
*
अरुणिमा कषाय परिधान,  
सुमनों की चमकीली मुस्कान
और प्रशान्त रूप मन में जगाते विश्वास :
आकर कोई योगेश्वरी
बोल मधुर वाणी सान्त्वनाभरी
सारा दुःख मिटाने पास
कर रही हैं आह्वान ।
मानो स्वर्ग से उतर
पधारी हैं धरती पर
करने नया जीवन प्रदान ॥ (२)
*
गाने लगी बयार
संगीत तैयार ।
वीणा बजाई भ्रमर ने,
सौरभ लगा नृत्य करने
उषा का निदेश मान ।
कुम्भाट भाट हो करने लगा स्तुति गान ।
कलिंग आया पट्टमागध बन,
बोला बिखरा ललित मधुर स्वन,
‘उठो सती-राज्याधीश्वरि !
बीती विभावरी ॥’ (३)
सुमनों की चमकीली मुस्कान
और प्रशान्त रूप मन में जगाते विश्वास :
आकर कोई योगेश्वरी
बोल मधुर वाणी सान्त्वनाभरी
सारा दुःख मिटाने पास
कर रही हैं आह्वान ।
मानो स्वर्ग से उतर
पधारी हैं धरती पर
करने नया जीवन प्रदान ॥ (२)
*
गाने लगी बयार
संगीत तैयार ।
वीणा बजाई भ्रमर ने,
सौरभ लगा नृत्य करने
उषा का निदेश मान ।
कुम्भाट भाट हो करने लगा स्तुति गान ।
कलिंग आया पट्टमागध बन,
बोला बिखरा ललित मधुर स्वन,
‘उठो सती-राज्याधीश्वरि !
बीती विभावरी ॥’ (३)
*
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English
Translation 
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Auspiciously
came 
Usha, the
blooming lotus-eyed dame,  
in her heart
cherishing keenly  
thirst for a
vision 
of the virtuous
Janaki.  
Bearing
dew-pearls as presentation  
in her hands of
leafage,  
standing forward
in the outer
courtyard 
of Sita’s
cottage,  
in cuckoo’s tone
spake she,  
‘O Chaste Lady !
Deign to give
your sight.  
Dawned the
night.’ (1)  
*
The saffron
costume  
of auroral
shine,  
flowers’ smiling
bloom  
and tranquil
mien  
make a room  
in the mind to
presume :  
Some goddess of
yoga reaching the place,  
by sweet words
giving solace  
calls to render
relief  
from pangs of
grief.  
From heaven on
earth as if  
has descended to
bestow a new life.  (2)  
*
Musical tune
Zephyr sang swinging.  
Black Bee played
on lute charming.  
By Usha’s
bidding, in dance  
rapt remained
Fragrance.  
Kumbhatua bird
as a royal bard  
began to
eulogize forward.  
As the
panegyrist premier 
Kalinga bird
appeared there   
and spake in
voice gracefully sweet, 
‘Wake please, 
O Queen of the
empire of chaste ladies !  
Dawned the night.’ (3)  
*  
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Sanskrit
Translation 
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मङ्गलं समागता सौम्याङ्गना 
उषा व्याकोषारविन्द-लोचना  
वैदेही-दर्शनाभिलाषं वहन्ती स्वहृदये । 
पल्लव-कर-द्वये 
नीहार-मौक्तिक-प्रकरोपहारं दधाना 
सती-निलय-बहिरङ्गणे विद्यमाना 
अभाषत कोकिल-कण्ठ-स्वना सूनरी, 
‘दर्शनं देहि सति
! प्रभाता विभावरी ॥’ (१) 
*
अरुण-काषायाम्बरम्, 
स्मितं सुमनसां विकस्वरम्, 
प्रशान्त-रूपं च स्वान्ते जनयन्ति प्रत्ययम् : 
काऽपि योगेश्वरी तत्रागत्य स्वयम् 
सुमधुर-वचनैः सान्त्वनां प्रदाय 
समाकारयति दुःखराशि-प्रशमनाय । 
नवीन-जीवन-दानार्थं सा ध्रुवम् 
विद्यते त्रिदिव-भुवनादवतीर्णा भुवम् ॥ (२) 
*
सङ्गीतं गायति स्म समीरणः, 
भृङ्गो वीणा-वादन-प्रवणः । 
सुरभिरवर्त्तत नर्त्तन-तन्मया 
उषाया अनुज्ञया  । 
वैतालिको भूत्वा कुम्भाट-विहङ्गः  
प्रारभत स्तुति-पठनम्  ।  
समागतो मागध-मुख्य-वेशः कलिङ्गः 
प्रोवाच सुललित-मधुर-स्वनम्, 
‘उत्तिष्ठ, सती-राज्याधीश्वरि !  
प्रभाता विभावरी ॥’ (३) 
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