Friday, August 25, 2023

Biodata (Sanskrit): Dr. Harekrishna Meher (परिचायिका : डॉ. हरेकृष्ण-मेहेर:)

डॉ. हरेकृष्ण-मेहेर: 
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हरेकृष्ण-मेहेरः आधुनिक-संस्कृत-साहित्यस्य अन्यतमः सुपरिचितः सारस्वत-साधकः । 
स कविः संस्कृत-विद्वान्, अध्यापकः, गवेषकः, समालोचकः, गीतिकारः, स्वर-रचनाकारः, 
सुवक्ता मौलिक-लेखकः सफलानुवादकश्च । 
ओड़िशा-राज्यस्य नूआपड़ा-जिल्लान्तर्गते सिनापालि-ग्रामे १९५६- ईसवीय-वर्षे 

कवि-परम्परा-वाहिनि वंशे स लब्ध-जन्मा । 
तस्य पिता दिवंगतः कविः नारायण-भरसा-मेहेर:, माता श्रीमती सुमती देवी । 

पितामहः दिवंगतः कविः मनोहर-मेहेरः ओड़िआ-साहित्ये पश्चिम-ओड़िशायाः 'गणकवि'-रूपेण चर्चितः । 

कवेः शिक्षा : 
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सिनापालि-उच्च-विद्यालये अध्ययन-पूर्वकम् ओड़िशायाः माध्यमिक-शिक्षापरिषदः 
माट्रिकुलेशन् (१९७१, प्रथम श्रेणी); 

गङ्गाधर-मेहेर-महाविद्यालये अध्ययन-पूर्वकम् सम्बलपुर-विश्वविद्यालयतः 
प्राक्-विश्वविद्यालय(पी.यू.)- (१९७२) तथा बी.ए. प्रथम वर्ष कला (१९७३, प्रथम श्रेणी) । 

कटक-स्थिते रेवेन्शा-महाविद्यालये अध्ययन-पूर्वकम् उत्कल-विश्वविद्यालयात् 
स्नातक-संस्कृत-सम्माने (ऑनर्स) प्रथम-श्रेणीषु प्रथमः (१९७५) । 

बनारस-हिन्दु-विश्वविद्यालयात् उपाधित्रयम् * * 

एम्.ए. संस्कृते स्वर्णपदक-प्राप्त: (१९७७), पीएच्.डी. संस्कृतम् (१९८१), 
डिप्लोमा-इन्-जर्मन् (१९७९) । 

बी.ए. संस्कृत-ऑनर्स-परीक्षायां सर्वोच्च-स्थानाधिकार-प्राप्ति-हेतोः  रेवेन्शा-महाविद्यालयात् 

जगन्नाथमिश्र-स्मारकी-पुरस्कार-प्राप्तः । 

एम्.ए.-संस्कृत-परीक्षायां सर्वोच्च-स्थान-प्राप्ति-हेतोः 

बनारस-हिन्दु-विश्वविद्यालय-स्वर्णपदकम्, 
श्रीकृष्णानन्द-पाण्डेय-सहारनपुर-स्वर्णपदकम्, 
काशीराज-पदकं च प्राप्य पुरस्कारेण सम्मानितः । 

सारस्वत-सेवा : 
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हरेकृष्ण-मेहेरः १९८१-वर्षे ओड़िशा-शिक्षा-सेवायां संस्कृताध्यापक-रूपेण नियुक्तः । 
बरगड़स्थ-पञ्चायत-महाविद्यालये, बालेश्वरस्थ-फकीरमोहन-महाविद्यालये, 
भवानीपाटनास्थ-सर्वकारीय-महाविद्यालये च  अध्यापनां कृतवान् । 
सम्बलपुर-स्थिते  गङ्गाधर-मेहेर-स्वयंशासित-महाविद्यालये 
स्नातकोत्तर-संस्कृत-विभागस्य वरिष्ठ-प्रवाचक-रूपेण  विभागाध्यक्ष-रूपेण च 
कार्यं सम्पाद्य २०१४-वर्षस्य मई-मासे  सेवा-निवृत्तः ।  

ओड़िआ-हिन्दी-आङ्ग्ल-संस्कृत-कोशली-भाषासु स कृतविद्यो लेखकः । 


तस्य अनुवादेषु ओड़िआ-प्रकृतिकवि-गङ्गाधरमेहेर-कृतस्य तपस्विनी-महाकाव्यस्य 

संस्कृत-हिन्दी-आङ्ग्ल-पद्यानुवादाः, 

भर्त्तृहरिशतकत्रय-कुमारसम्भव-ऋतुसंहार-मेघदूत-रघुवंश-नैषध(नवमसर्ग)-गीतगोविन्द-                                
श्रीमद्भगवद्गीतादीनां संस्कृत-ग्रन्थानाम् ओड़िआ-छन्दोबद्ध-पद्यानुवादाः, 
कालिदासीय-मेघदूत-काव्यस्य कोशली-गीत-रूपान्तरं च तस्य रचना-नैपुण्यं प्रकाशयन्ति । 

राष्ट्रीय-अन्ताराष्ट्रीय-स्तरीय-पत्रपत्रिकासु तस्य शोधलेख-निबन्ध-कवितादयः प्रकाशिताः सन्ति । 

तेन विश्वसंस्कृतसम्मेलन-राज्यस्तरीय-सम्मेलनेषु शोधलेख-परिवेषण-समेतं कवि-सम्मेलनेषु 
मौलिक- कविता-पठनं सक्रिय-योगदानं च कृतम् । 
आकाशवाणी-दूरदर्शनेषु तस्य लेख-परिचर्चा-कवितादयः प्रसारिताः । 

संस्कृतस्य आधुनिकीकरण-सरलीकरण-दिशासु एतस्य कवेः सारस्वतावदानमुल्लेखनीयम् । 

आधुनिक-संस्कृत-साहित्ये स्वीय-काव्यगुणैः सर्जनशील-शोधलेखैश्च 
स स्वतन्त्र-स्थानमधिकरोति । पदलालित्य-समेतं सङ्गीतमयत्वम् अस्य गीतिकवेः 
काव्य-रचनायाः विशेषत्वम् । 

मातृगीतिकाञ्जलिः, पुष्पाञ्जलि-विचित्रा, स्वस्तिकविताञ्जलिः, सारस्वतायनम्, सौन्दर्य-सन्दर्शनम्, 

सावित्रीनाटकम्, जीवनालेख्यम्, मौनव्यञ्जना, अस्रमजस्रम्, हासितास्या वयस्या, 
उत्कलीय-सत्कला, स्तवार्चन-स्तवकम्, सूक्ति-कस्तूरिका, मेहेरीय-छन्दोमाला चेत्यादीनि 
तस्य संस्कृत-काव्यानि प्रबन्ध-ग्रन्थाश्च । 

अयं कविः गङ्गाधर-सम्मानः, गङ्गाधर-सारस्वत-सम्मानः, 

जयकृष्णमिश्र-काव्य-सम्मानः, विद्यारत्न-प्रतिभा-सम्मान:, 
अशोकचन्दन-स्मारक-सम्मान:, आचार्य-प्रफुल्लचन्द्र-राय-स्मारक-सम्मानः, 
हरिप्रियामुण्ड-स्मारकी-गङ्गाधर-मेहेर-सम्मानः, ‘कोशली मेघदूत’-पुस्तकार्थं 
सम्बलपुर-विश्वविद्यालय-प्रदत्तः डा.नीलमाधव-पाणिग्राही-सम्मानः, 
वाचस्पति-गणेश्वर-रथ-वेदान्तालङ्कार-सम्मानः, विश्व-संस्कृत-दिवस-सम्मानः, 
राज्यस्तरीय-गङ्गाधर-मेहेर-स्मृतिसम्मानः, सर्वश्री-साहित्य-सम्मानः, गीतिसंस्कृत-महाकवि: राष्ट्रिय-सम्मान:, व्यासभारती-सम्मान: चेत्यादिभिः समलङ्कृतः तथा अनेकैः सारस्वत-सास्कृतिकानुष्ठानैः 
मानपत्र-समेतं संवर्धितः । तस्य अनेकानि पुस्तकानि प्रकाशितानि सन्ति । 

स ओड़िशा-साहित्य-अकादम्या: पूर्वतन-सदस्य: । 
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Biodata Details: Dr. Harekrishna Meher : Works and Achievements : 
Link :  http://hkmeher.blogspot.com/2007/07/my-biodata.html
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Interview with Dr.Harekrishna Meher: Published in ‘Bartika’ Magazine (2017): 
Hindi Version: Link : 

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Interview with Dr.Harekrishna Meher: Sanskrit Saptahiki, All India Radio, New Delhi: 12 June 2021: 

http://hkmeher.blogspot.com/2021/08/interview-with-dr-harekrishna-meher-by.html

YouTube Link : https://youtu.be/n0XPok3m-rM 

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Contributions of Harekrishna Meher to Sanskrit Literature: 

सङ्केतः
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Dr. HAREKRISHNA MEHER
Retired Sr. Reader and Head, 
Post-Graduate Department of Sanskrit, 
Gangadhar Meher Autonomous College, 
SAMBALPUR - 768004, Orissa (India) 

Mobile : +91-94373-62962 
e-mail : meher.hk@gmail.com 
website : http://hkmeher.blogspot.com 
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Friday, May 14, 2021

BIODATA: HINDI : Dr. HAREKRISHNA MEHER (डा. हरेकृष्ण मेहेर : परिचय)

परिचय-पत्रिका 
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डॉ. हरेकृष्ण मेहेर 

जन्म-दिनांक : ५ मई १९५६ 
जन्मस्थान : सिनापालि (ओड़िशा) 
पिता : कवि नारायण भरसा मेहेर 
माता : श्रीमती सुमती देवी 
पत्‍नी : श्रीमती कुन्तला कुमारी मेहेर   
मातृभाषा : ओड़िआ 
राष्ट्रीयता : भारतीय * 

शिक्षा :
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सिनापालि उच्च विद्यालय, माध्यमिक शिक्षापरिषद्, ओड़िशा से 
माट्रिकुलेशन् (१९७१, प्रथम श्रेणी); 
गङ्गाधर मेहेर महाविद्यालय, सम्बलपुर विश्वविद्यालय से 
प्राक्-विश्वविद्यालय (पी.यू.) - (१९७२) एवं प्रथम वर्ष डिग्री कला (१९७३, प्रथम श्रेणी); 
रेवेन्शा महाविद्यालय कटक में अध्ययन पूर्वक उत्कल विश्वविद्यालय से
बी.ए. संस्कृत अनर्स, प्रथम श्रेणी में प्रथम (१९७५) ; 
बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय से तीन उपाधियाँ * *  एम्.ए. संस्कृत, प्रथम श्रेणी में प्रथम, स्वर्णपदक प्राप्त (१९७७),
पीएच्.डी. संस्कृत (१९८१), डिप्लोमा इन् जर्मन् (१९७९). 

* विशेष विषय : भारतीय दर्शन । 
* पीएच्.डी. शोध-विषय : Philosophical Reflections in the Naishadhacharita.

* बी.ए. संस्कृत आनर्स में सर्वोच्च स्थान अधिकार हेतु 
   रेवेन्शा महाविद्यालय से जगन्नाथ मिश्र स्मारकी पुरस्कार प्राप्त । 

* एम्.ए. संस्कृत परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्ति हेतु 
   बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय-स्वर्णपदक, श्रीकृष्णानन्द पाण्डेय सहारनपुर-स्वर्णपदक, 
   काशीराज-पदक एवं पुरस्कार से सम्मानित । 

* अध्यापक, कवि, गवेषक, समालोचक, प्राबन्धिक, गीतिकार, स्वर-रचनाकार, 
    सुवक्ता एवं सफल अनुवादक के रूप में परिचित । 

* ओड़िआ, हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत एवं कोशली – पाँच भाषाओं में मौलिक लेखन 
   तथा अनेक श्रेष्ठ काव्यकृतियों के छन्दोबद्ध अनुवाद । 

* राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की पत्रपत्रिकाओं में शोधलेख, प्रबन्ध और कविता आदि प्रकाशित । 
* अनेक मौलिक और अनूदित पुस्तकें प्रकाशित । 

* अन्तर्जाल पर अनेक पत्रिकाओं में तथा अपने वेब्‌साइट् में कई लेख प्रकाशित । 

* विश्वसंस्कृत-सम्मेलनों, राज्यस्तरीय अनेक सम्मेलनों एवं संगोष्ठियों में 
   शोधलेख परिवेषण तथा कवि-सम्मेलनों में सक्रिय योगदान ।

* संस्कृत के सरलीकरण और आधुनिकीकरण की दिशा में विशेष प्रयत्नशील । 
* अपने उद्भावित मौलिक छन्दों में आधुनिक संस्कृत गीति-रचना तथा स्वर-रचना ।

* आकाशवाणी-दूरदर्शन आदि में लेख, परिचर्चा और कविताएँ प्रसारित । 

* डीडी न्यूज् - चैनल दिल्ली के  'वार्तावली' कार्यक्रम में अनेक हिन्दी चलचित्र-गीतों के स्वकृत संस्कृत गीतानुवाद वीडियो प्रसारित एवं यू-ट्यूब् पर स्थापित ।

* पितामह दिवंगत कवि मनोहर मेहेर पश्चिम ओड़िशा के “गणकवि” के रूप में सुपरिचित । 
   कवि-परम्परा से मौलिक सर्जनात्मक-प्रतिभासम्पन्न डॉ. मेहेर की भाषा-साहित्य एवं 
   सङ्गीत कला में विशष अभिरुचि । आधुनिक संस्कृत साहित्य के अन्यतम गीतिकवि के रूप में प्रतिष्ठित ।

* कई उपलक्ष्यों में स्वरचित संस्कृत-गीतियाँ एवं कोशली गीत एकल तथा वृन्दगान के 
   रूप में परिवेषित । 

* हाथरस  उत्तरप्रदेश की लोकप्रिय ‘संगीत’ पत्रिका में अपनी मौलिक नवीन छन्दोबद्ध 
   संस्कृत गीतियों सहित स्वरचित स्वरलिपियाँ प्रकाशित । 
   प्रसिद्ध संगीतकार पण्डित एच्. हरेन्द्र जोशी- रचित स्वरलिपियाँ भी वहाँ प्रकाशित । 
   डॉ. मेहेर-कृत संस्कृत गीत “नववर्ष-गीतिका” की आडियो कैसेट् एवं वीडियो कैसेट् 
   मध्यप्रदेश की रतलाम एवं जावरा आदि नगरियों में स्थानीय टी.वी. चैनलों पर प्रसारित । 

* कुछ विश्वविद्यालयों के प्रस्तुत शोध-ग्रन्थों में तथा अन्यत्र अनेक विद्वानों के शोधलेखों में 
   डॉ. मेहेर संस्कृत कवि एवं मौलिक लेखक के रूप में संस्कृत गीतियों सहित चर्चित । स्वतन्त्ररूप से भी  उनकी संस्कृत काव्यकृतियों पर उच्च शोधकार्य सम्पन्न ।

* कुछ महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में उनकी संस्कृत कविताएं बीए पाठ्यक्रम में अन्तर्भुक्त । ओड़िशा के उच्च विद्यालय में उनकी संस्कृत कविता पाठ्यपुस्तक में स्थानित ।

* आन्तर्जातिक अनेक जीवनी-ग्रन्थों में परिचयात्मक विवरण प्रकाशित ।
* ओड़िशा साहित्य अकादेमी, भुवनेश्वर  के पूर्वतन सदस्य ।
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साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अनुष्ठानों द्वारा सम्मान प्राप्त :
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* “गंगाधर सम्मान” (२००२): सांस्कृतिक परिषद, पाटनागड़. 

* “गंगाधर सारस्वत सम्मान” (२००२): गंगाधर साहित्य परिषद, बरपालि.

* “जयकृष्ण मिश्र काव्य सम्मान” (२००३): निखिलोत्कल संस्कृत कवि सम्मेलन, कटक.

* "विद्यारत्न प्रतिभा सम्मान” (२००५): 
राज्यस्तरीय पण्डित नीलमणि विद्यारत्न स्मृति संसद, भुवनेश्वर.

*  "अशोक चन्दन स्मारक गंगाधर  सम्मान" (२००९): 
राज्यस्तरीय स्वभावकवि गंगाधर स्मृति समिति, बरपालि  एवं 
केदारनाथ कला साहित्य संसद, अम्बाभोना.

* "आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय स्मारक सम्मान" (२०१०):  
अकादेमी अफ्‌ बेङ्गली पोएट्रि, कोलकाता.
 
* "हरिप्रिया-मुण्ड स्मारकी गंगाधर मेहेर सम्मान" (२०१०): 
कवि गंगाधर मेहेर क्लब्, बरपालि.

* "डॉ.नीलमाधव-पाणिग्राही सम्मान" (२०१०): ['कोशली मेघदूत' पुस्तक के लिये],
सम्बलपुर विश्वविद्यालय, ज्योतिविहार सम्बलपुर.

* "एवार्ड़् अफ् एप्रिसिएशन्" (जयदेव उत्सव -२००८): ओड़िशी एकाडेमी, लोधी मार्ग, नई दिल्ली.

* "वाचस्पति गणेश्वर रथ वेदान्तालङ्कार-सम्मान" (२०१३): 
 (विश्वसंस्कृत-दिवस-समारोह, पण्डित सम्मिलनी) -
बालाजी मन्दिर सुरक्षा समिति, भवानीपाटना, ओड़िशा.

* "विश्वसंस्कृत-दिवस-सम्मान" (२०१३): 
महाबीर सांस्कृतिक अनुष्ठान, भवानीपाटना, ओड़िशा.

* "एकाम्र सम्मान" (२०१८): 
केदारनाथ गवेषणा प्रतिष्ठान, भुवनेश्वर.

* "गंगाधर मेहेर सम्मान" (२०१८): 
गंगाधर मेहेर प्रतिष्ठान, भुवनेश्वर.

* "राज्यस्तरीय गंगाधर मेहेर स्मृति सम्मान" (२०२०): 
गंगाधर मेहेर स्मृति समिति एवं राजज्योति सेवा समिति, टिटिलागड़, बलांगीर. 

* "सर्वश्री साहित्य सम्मान" (२०२१): सर्वश्री सबाखिआ साहित्य संसद, भवानीपाटना, ओड़िशा. 

* "गीतिसंस्कृत-महाकवि: राष्ट्रिय सम्मान" (२०२३): लोकभाषा प्रचार समिति, पुरी, ओड़िशा. 

* "व्यासभारती सम्मान" (२०२३): महर्षिव्यासदेव राष्ट्रीय प्राच्यविद्या-गवेषणा केन्द्र, राउरकेला, ओड़िशा. 

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मानपत्र सहित    

संवर्धना एवं अभिनन्दन प्राप्त : 
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* खरियार साहित्य समिति, राजखरियार (१९९८)
* गदाधर साहित्य संसद, कोमना (१९९८)
* सम्बलपुर विश्वविद्यालय, ज्योतिविहार (२०००)  
* शिक्षाविकाश परिषद, कलाहाण्डि (२००३)
* कलाहाण्डि लेखक कला परिषद, भवानीपाटना (२००३)
*अभिराम स्मृति पाठागार ट्रष्ट, भवानीपाटना (२००६)  
* उदन्ती महोत्सव, सिनापालि, नूआपड़ा (२०१२) 
* बनानी-कवि-सम्मिलनी, कलाहाण्डि-लेखक-कला-परिषद (२०१३)
* गंगाधर सारस्वत समिति, सिनापालि, नूआपड़ा (२०१६)
* निखिल ओड़िशा मेहेर भुलिआ समाज, सम्बलपुर (पद्मपुर महासभा, २०१८)
* सरकारी स्वयंशासित महाविद्यालय, संस्कृत विभाग, भवानीपाटना (२०१८) 

* महर्षिव्यासदेव राष्ट्रीय प्राच्यविद्या-गवेषणा केन्द्र, राउरकेला, ओड़िशा (२०२०) 

* माटिलग्ना साहित्य संसद, मालकानगिरि, ओड़िशा (२०२१)
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अध्यापना :
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* १९८१ से ओड़िशा सरकार के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा नियुक्त होकर ओड़िशा शिक्षा सेवा (ओ. ई. एस्.) में संस्कृत अध्यापक के रूप में योगदान । विभिन्न सरकारी महाविद्यालयों में अध्यापना ।
  सरकारी पञ्चायत महाविद्यालय,  बरगड़ (१९८१-१९८८); फकीरमोहन महाविद्यालय, बालेश्वर (१९८८-१९९२);
  सरकारी स्वयंशासित महाविद्यालय भवानीपाटना (१९९२-२०१२);  गंगाधर मेहेर स्वयंशासित महाविद्यालय, सम्बलपुर (२०१२-२०१४).

१९८१ से अध्यापक, १९८६ से वरिष्ठ अध्यापक, १९९४ से रीडर (ओईएस् -१, प्राध्यापक/उपाचार्य), १९९९ से वरिष्ठ उपाचार्य । 


 * गंगाधर मेहेर स्वयंशासित महाविद्यालय, सम्बलपुर में स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के वरिष्ठ रीडर एवं विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य सम्पादन करते हुए मई २०१४ में (ओड़िशा शिक्षासेवा-१) सेवा-निवृत्त । 
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* प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ * 
प्रकाशित : (पुस्तक)
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 (१) पीएच्‌. डी. शोधग्रन्थ “Philosophical Reflections in the Naisadhacarita”
(ISBN : 81-85094-21-7), पुन्थि पुस्तक, ३६/४बी, विधान सरणी, कोलकाता-४, १९८९.
(२) नैषध-महाकाव्ये धर्मशास्त्रीय-प्रतिफलनम् (शोधपुस्तिका),
धर्मशास्त्र विभाग, श्रीजगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी, १९९४.
(३) साहित्यदर्पण : अलंकार (ओड़िआ-संस्कृत व्याख्या सहित)
ISBN: 81-7411-12-7, विद्यापुरी, बालुबजार, कटक-२, १९९५.
(४) श्रीकृष्ण-जन्म (मौलिक ओड़िआ कविता पुस्तक), १९७७.
(५) श्रीरामरक्षा-स्तोत्र (शिवरक्षा-स्तोत्र सहित ओड़िआ छन्दोबद्ध पद्यानुवाद),१९७७.
(६) शिवताण्डव-स्तोत्र (ओड़िआ पद्यानुवाद), १९७८.
(७) विष्णु-सहस्रनाम (ओड़िआ पद्यानुवाद), १९७८.
(८) गायत्री-सहस्रनाम (ओड़िआ पद्यानुवाद), १९८२.
५ से ८ प्रकाशक: बाणी भण्डार, ब्रह्मपुर, गञ्जाम, ओड़िशा.  
(९) मनोहर पद्यावली (संपादित), प्रकाशक: श्रीनारायण भरसा मेहेर, मनोहर कवितावास, सिनापालि, १९८५.
(१०) मातृगीतिकाञ्जलि: (आधुनिक मौलिक संस्कृत गीतिकाव्य),
कलाहाण्डि लेखक कला परिषद, भवानीपाटना, १९९७.
(११) तपस्विनी (स्वभावकवि गङ्गाधर मेहेर-कृत ओड़िआ तपस्विनी काव्य का सम्पूर्ण हिन्दी अनुवाद), सम्बलपुर विश्वविद्यालय, ज्योतिविहार, सम्बलपुर, ओड़िशा, २०००.
(१२) Tapasvini of Gangadhara Meher (स्वभावकवि गंगाधर मेहेर के  'तपस्विनी' काव्य का सम्पूर्ण अंग्रेजी अनुवाद), ISBN: 81-87661-63-1, आर्. एन्. भट्टाचार्य, ए-१२७, एच्.वी. टाउन, सोदेपुर, कोलकाता-७००११०, २००९.
(१३) कोशली मेघदूत (महाकवि कालिदास-कृत मेघदूत काव्य का सम्पूर्ण कोशली गीत रूपान्तर), ISBN: 13-978-93-80758-03-9, तृप्ति प्रकाशन, भुवनेश्वर-७५१००२, ओड़िशा  २०१०. 
(१४) तपस्विनी (स्वभावकवि गङ्गाधर मेहेर-कृत ओड़िआ तपस्विनी काव्य का सम्पूर्ण संस्कृत अनुवाद), ISBN: 978-81-7110-412-3, परिमल पब्लिकेशन्स्, २७-२८ शक्तिनगर, दिल्ली-७, २०१२.
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याजपुर, ओड़िशा के प्रसिद्ध मुखपत्र "बर्त्तिका" के विभिन्न दशहरा विशेषांकों में कुछ प्रसिद्ध संस्कृत काव्यों के डा. मेहेर-कृत ओड़िआ छ्न्दोबद्ध पद्यानुवाद प्रकाशित : (प्रकाशन वर्ष सूचित):

* नीतिशतक (भर्तृहरि), संपूर्ण, १९९५-९७.
* शृङ्गार-शतक (भर्तृहरि), संपूर्ण, १९९८ .
* वैराग्य-शतक (भर्तृहरि), संपूर्ण, १९९९.

* नैषधचरित-नवमसर्ग (श्रीहर्ष), २०००.

* रघुवंश (कालिदास):
द्वितीय सर्ग - २००२. तृतीय सर्ग -२०२१. 
षष्ठ-सप्तम सर्ग - २०१८.

* कुमारसम्भव (कालिदास): 
प्रथम सर्ग - २००५.
द्वितीय सर्ग - २००६. 
तृतीय-चतुर्थ सर्ग - २०१९.     
पञ्चम सर्ग - २००१.
षष्ठ सर्ग - २०२०.
सप्तम  सर्ग - २००४.
अष्टम सर्ग - २००९.

* ऋतुसंहार (कालिदास), संपूर्ण, २०१५.
* मेघदूत (कालिदास), संपूर्ण, २०१७.
* गीतगोविन्द (जयदेव), संपूर्ण, २०१६.
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* कोशली मेघदूत (कवि कालिदास के मेघदूत काव्य का संपूर्ण कोशली गीत अनुवाद), 'बर्त्तिका', दशहरा विशेषांक-२००३.
(बाद में २०१० में स्वतन्त्र पुस्तक रूप में प्रकाशित एवं सम्बलपुर विश्वविद्यालय द्वारा "डा. नीलमाधव-पाणिग्राही सम्मान"-२०१० से सम्मानित)  

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कविवर राधानाथ राय-कृत ओड़िआ कविता “बर्षा” का संस्कृत श्लोकानुवाद  (लोकभाषा-सुश्री: पत्रिका, पुरी, २००६).
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अप्रकाशित (मौलिक):
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संस्कृत में :  

* पुष्पाञ्जलि-विचित्रा (आधुनिक गीतिकाव्य)  

* स्वस्तिकविताञ्जलि: (आधुनिक गीतिकाव्य)  

* सारस्वतायनम् (शोध-प्रबन्धावली) 

* सौन्दर्य-सन्दर्शनम् (सौन्दर्यशास्त्र-विषयक काव्य) 

* सावित्रीनाटकम् 

* जीवनालेख्यम् (आधुनिक कविता संग्रह) 

* मौन-व्यञ्जना (आधुनिक कविता संग्रह) 

* अस्रमजस्रम् (आधुनिक कविता संग्रह) 

* हासितास्या वयस्या (हाइकु-सिजो-तान्का कविता संग्रह) 

* उत्कलीय-सत्कला (गीतिकाव्य) 

* स्तवार्चन-स्तवकम् (स्तोत्रकाव्य) 

* सूक्ति-कस्तूरिका (सूक्तिकाव्य) 

* मेहेरीय-छन्दोमाला (नव्यछन्द-विषयक कृति). 

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ओड़िआ में : 
* आलोचनार पथे (शोध-प्रबन्धावली)
* भञ्जीय काव्यालोचना 
* भञ्ज-साहित्यरे जगन्नाथ तत्त्व  
* घेन नैषध पराये
* ओड़िआ रीति-साहित्यरे दार्शनिक-चिन्तन
* निबन्धायन  
* कबिताबली
* शिखण्डीकाव्य
* ओडिशा वर्णमालार कृत्रिम समस्या
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अंग्रेजी में : 
* Poems of the Mortals
* Glory (Research Articles and Essays)
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हिन्दी में : 
* हिन्दी-सारस्वती (निबन्ध संग्रह)
* कुछ कविता-सुमन । 

कोशली में : कोशली गीतमाला । 
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अप्रकाशित (अनुवाद) : 
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* संस्कृत से ओड़िआ : 
श्रीमद्‍भगवद्‍गीता, कुमारसम्भव, रघुवंश.
* संस्कृत से हिन्दी : मातृगीतिकाञ्जलि:  
* संस्कृत से अंग्रेजी : 
शिवताण्डव-स्तोत्र, गीतगोविन्द. 
* ओड़िआ से हिन्दी : 
कवि गङ्गाधर मेहेर-प्रणीत ‘प्रणय-वल्लरी’, ‘अर्घ्यथाली’, ‘कीचकवध’ काव्य. 
* ओड़िआ से अंग्रेजी : कवि गङ्गाधर मेहेर-कृत 'अर्घ्यथाली'.
" ओड़िआ से संस्कृत : कवि गङ्गाधरमेहेर-कृत प्रणयवल्लरी, अर्घ्यथाली । कविवर  राधानाथराय-कृत 'शरत' कविता. 

* हिन्दी से संस्कृत :
'चलचित्र-गीत-संस्कृतायनम्'
(हिन्दी चलचित्र गीतों के मूलस्वरानुसारी गायनानुकूल संस्कृतानुवाद)
====== 

विस्तृत जानकारी के लिए अंग्रेजी परिचय-पत्रिका द्रष्टव्य । 

Related Link : 

* Biodata in English : 
http://hkmeher.blogspot.in/2012/06/brief-biodata-english-dr-harekrishna.html 

* Biodata : (Hindi-English-Sanskrit-Odia) :
http://tapasvini-kavya.blogspot.in/2011/12/biodata-english-hindi-sanskrit-oriya-dr.html
--- 
आखर कलश : AakharKalash: Hindi E-magazine: Biodata:
http://aakharkalash.blogspot.com/2010/05/blog-post_05.html?m=1
--- 

हरेकृष्ण मेहेर से एक साक्षात्कार : हिन्दी अनुवाद ( बर्त्तिका मुखपत्र में प्रकाशित) * 

Interview in Bartika Magazine (Hindi Version):  
http://hkmeher.blogspot.com/2017/11/interview-with-dr-harekrishna-meher-by.html?m=1
--- 

संस्कृत साहित्य को हरेकृष्ण मेहेर का अवदान : 
Contributions of Harekrishna Meher to Sanskrit Literature:
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/04/contributions-of-drharekrishna-meher-to.html?m=1
--
* कुछ पुस्तकों की छवि के लिये : 
http://hkmeher.blogspot.com/2010/06/images-of-main-books-of-harekrishna.html 

* विशेष विवरण के लिये द्रष्टव्य : 
Biodata : My Works and Achievements : 
http://hkmeher.blogspot.com/2007/07/my-biodata.html  
 = = = = = =

Dr. HAREKRISHNA MEHER 
Retired Sr. Reader and Head, 
Post-Graduate Department of Sanskrit 
Gangadhar Meher Autonomous College (College with Potential for Excellence), SAMBALPUR - 768004. Orissa (India) 

Mobile : + 91- 9437362962 
e-mail : meher.hk@gmail.com / 
Blogsite : http://www.hkmeher.blogspot.com 

* * * 

Thursday, May 13, 2021

TAPASVINI MAHAKAVYA : Complete Sanskrit Version: Harekrishna Meher

Tapasvini Sanskrit Complete:
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http://hkmeher.blogspot.com/2021/05/tapasvini-mahakavya-sanskrit-version.html?m=1
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Tapasvini Sanskrit
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https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=5075364599156375&id=100000486559190
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SANSKRIT VERSION OF
TAPASVINI MAHAKAVYA
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* Tapasvini * Original Odia by:
Swabhavakavi Gangadhar Meher (1862-1924)
*
Complete Tri-lingual Hindi-English-Sanskrit Translations by: Dr. Harekrishna Meher
(All Published)
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HINDI Tapasvini
(Translated in 1983):
'तपस्विनी'
Publisher: Sambalpur University, Jyoti Vihar, Sambalpur, Odisha, 2000.
*
ENGLISH Tapasvini
(Translated in 1983):
'Tapasvini of Gangadhara Meher'
Publisher: R.N.Bhattacharya, Sodepur, Kolkata, 2009.
*
SANSKRIT Tapasvini
(Translated in 1997):
'तपस्विनी महाकाव्यम्'
Publisher: Parimal Publications, Shaktinagar, Delhi, 2012.
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All Three Translations are completely available on web.
Blogsite Link:
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/05/complete-tapasvini-kavya-hindi-english.html
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SANSKRIT TAPASVINI :
Web-Link :
-
Praak-kathanam:
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/05/sanskrit-tapasvini-praak-kathanam.html
*
Mukhabandha:
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/04/sanskrit-tapasvini-preface.html
"
Research Article on Tapasvini:
http://hkmeher.blogspot.com/2011/07/gangadhara-mehers-tapasvini-sanskrit.html
*
Canto-1 :
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/04/sanskrit-tapasvini-canto-1_6328.html
*
Canto-2 :
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/04/sanskrit-tapasvini-canto-2.html
*
Canto-3 :
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/04/sanskrit-tapasvini-canto-3.html
*
Canto-4 :
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/04/sanskrit-tapasvini-canto-4_6.html
*
Canto-5 :
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/04/sanskrit-tapasvini-canto-5.html
*
Canto-6 :
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/05/sanskrit-tapasvini-canto-6.html
*
Canto-7 :
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/05/sanskrit-tapasvini-canto-7.html
*
Canto-8 :
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/05/sanskrit-tapasvini-canto-8.html
*
Canto-9 :
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/05/sanskrit-tapasvini-canto-9.html
*
Canto-10 :
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/05/sanskrit-tapasvini-canto-10.html
*
Canto-11 (Last):
http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2013/05/sanskrit-tapasvini-canto-11.html
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Enlarged Research Article Published in Sanskrit E-Journal *PRACHI PRAJNA* Volume-5, December 2018 :
कवि-गङ्गाधरमेहेर-कृतं तपस्विनी-महाकाव्यम् : एकमनुशीलनम् *
Link: (ARTICLE LINK given there):
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=3023916970967825&id=100000486559190
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A Beautiful Depiction of Dawn (Usha) in the pen of Prakriti-Kavi Gangadhar Meher: (मङ्गळे अइला उषा):
Link:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4948795725146597&id=100000486559190
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कवि गङ्गाधरमेहेर-प्रणीत ‘तपस्विनी’ महाकाव्य का
हरेकृष्णमेहेर-कृत संस्कृतानुवाद : एक समीक्षण
(Hindi Review Article Published in
‘DRIK’, Volume 28-29, 2012-2013, pages-42-49,
Drig Bharati, Yojana-3, Jhusi, Allahabad, Uttar Pradesh):
http://hkmeher.blogspot.com/2015/05/sanskrit-tapasvini-of-harekrishna-meher_14.html?m=1
* * *
Hindi-English-Sanskrit Articles on Tapasvini:
http://hkmeher.blogspot.com/2011/08/my-hindi-english-sanskrit-articles-on.html
====== 

Biodata : 

http://tapasvini-kavya.blogspot.com/2011/12/biodata-english-hindi-sanskrit-oriya-dr.html?m=1

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Friday, December 30, 2016

Beautiful Depiction of Dawn (Usha) in Tapasvini Kavya/Dr. HKMeher

Beautiful Depiction of Dawn (Usha)  
in Tapasvini-Kavya of Poet Gangadhar Meher
*
(Extracted from Tri-lingual Translations of Tapasvini
By  Dr. Harekrishna Meher) 
= = = = = = = = = = =
Original Odia Poem from Canto-IV
composed in mellifluous Chokhi-Raga :   
= = = = = = = = = = =
मङ्गळे अइला उषा   
बिकच-राजीब-दृशा
जानकी-दर्शन-तृषा 
हृदये बहि      
कर-पल्लबे नीहार-     
मुक्ता धरि उपहार
सतीङ्क बास बाहार  
प्राङ्गणे रहि  ।
कळकण्ठ-कण्ठे कहिला,
दरशन दिअ सति  ! राति पाहिला ॥ ()
*
अरुण कषाय बास     
कुसुम-कान्ति-बिकाश
प्रशान्त रूप बिश्वास 
दिअन्ति मने  ।  
केउँ य़ोगेश्वरी आसि    
मधुर भाषे आश्वासि
डाकुछन्ति दुःखराशि   
उपशमने  ।
देबा पाइँ नब जीबन,
स्वर्गुँ कि ओह्लाइछन्ति  मर्त्त्य भुबन ॥ ()  
*
समीर सङ्गीत गाए   
भ्रमर बीणा बजाए  
सुरभि नर्त्तने थाए   
उषा-निदेशे  ।  
कुम्भाटुआ होइ भाट   
आरम्भिला स्तब पाठ
कळिङ्ग अइला पाट-   
मागध बेशे  ।  
लळित मधुरे कहिला,
उठ सती-राज्य-राणि !  राति पाहिला ॥’ ()
*
= = = = = = = = = = = = = = 
Hindi Translation
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समंगल आई सुन्दरी 
प्रफुल्ल-नीरज-नयना उषा, 
हृदय में ले गहरी 
जानकी-दर्शन की तृषा  ।  
नीहार-मोती उपहार लाकर पल्लव-कर में, 
सती-कुटीर के बाहर 
आंगन में खड़ी होकर  
बोली कोकिल-स्वर में,   
दर्शन दो, सती अरी  ! 
बीती  विभावरी ॥’ (१) 
*
अरुणिमा कषाय परिधान,  
सुमनों की चमकीली मुस्कान  
और प्रशान्त रूप मन में जगाते विश्वास : 
आकर कोई योगेश्वरी 
बोल मधुर वाणी सान्त्वनाभरी 
सारा दुःख मिटाने पास 
कर रही हैं आह्वान  ।  
मानो स्वर्ग से उतर  
पधारी हैं धरती पर  
करने नया जीवन प्रदान ॥ (२) 
*
गाने लगी बयार 
संगीत  तैयार   
वीणा बजाई भ्रमर ने,  
सौरभ लगा नृत्य करने  
उषा का निदेश मान  ।  
कुम्भाट भाट हो करने लगा स्तुति गान ।   
कलिंग आया पट्टमागध बन,   
बोला बिखरा ललित मधुर स्वन,    
उठो  सती-राज्याधीश्वरि ! 
बीती  विभावरी ॥’ (३) 
*
= = = = = = = = = = = = = = =   
English Translation
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Auspiciously came
Usha, the blooming lotus-eyed dame,  
in her heart cherishing keenly  
thirst for a vision
of the virtuous Janaki.  
Bearing dew-pearls as presentation  
in her hands of leafage,  
standing forward
in the outer courtyard
of Sita’s cottage,  
in cuckoo’s tone spake she,  
‘O Chaste Lady !
Deign to give your sight.  
Dawned the night.’ (1)  
*
The saffron costume  
of auroral shine,  
flowers’ smiling bloom  
and tranquil mien  
make a room  
in the mind to presume :  
Some goddess of yoga reaching the place,  
by sweet words giving solace  
calls to render relief  
from pangs of grief.  
From heaven on earth as if  
has descended to bestow a new life.  (2)  
*
Musical tune Zephyr sang swinging.  
Black Bee played on lute charming.  
By Usha’s bidding, in dance  
rapt remained Fragrance.  
Kumbhatua bird as a royal bard  
began to eulogize forward.  
As the panegyrist premier
Kalinga bird appeared there   
and spake in voice gracefully sweet,
‘Wake please,
O Queen of the empire of chaste ladies !  
Dawned the night.’ (3)  
*  
= = = = = = = = = = = = = = = 
Sanskrit Translation
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मङ्गलं समागता सौम्याङ्गना
उषा व्याकोषारविन्द-लोचना
वैदेही-दर्शनाभिलाषं वहन्ती स्वहृदये ।
पल्लव-कर-द्वये
नीहार-मौक्तिक-प्रकरोपहारं दधाना
सती-निलय-बहिरङ्गणे विद्यमाना
अभाषत कोकिल-कण्ठ-स्वना सूनरी,
दर्शनं देहि सति ! प्रभाता विभावरी ॥ (१)
*
अरुण-काषायाम्बरम्,
स्मितं सुमनसां विकस्वरम्,
प्रशान्त-रूपं च स्वान्ते जनयन्ति प्रत्ययम् :
काऽपि योगेश्वरी तत्रागत्य स्वयम्
सुमधुर-वचनैः सान्त्वनां प्रदाय
समाकारयति दुःखराशि-प्रशमनाय ।
नवीन-जीवन-दानार्थं सा ध्रुवम्
विद्यते त्रिदिव-भुवनादवतीर्णा भुवम् ॥ (२)
*
सङ्गीतं गायति स्म समीरणः,
भृङ्गो वीणा-वादन-प्रवणः ।
सुरभिरवर्त्तत नर्त्तन-तन्मया
उषाया अनुज्ञया  ।
वैतालिको भूत्वा कुम्भाट-विहङ्गः  
प्रारभत स्तुति-पठनम्  ।  
समागतो मागध-मुख्य-वेशः कलिङ्गः
प्रोवाच सुललित-मधुर-स्वनम्,
उत्तिष्ठ, सती-राज्याधीश्वरि !  
प्रभाता विभावरी ॥ (३)
= = = = = = = = = = = = = 
Ref : Complete Hindi-English-Sanskrit Versions of Tapasvini Kavya : 
* * * 

Thursday, December 8, 2016

आधुनिक-संस्कृत-वाङ्मये काव्यधारा (Kavya in Modern Sanskrit Literature): Dr.Harekrishna Meher

आधुनिक-संस्कृत-वाङ्मये काव्यधारा 
डॉहरेकृष्ण-मेहेरः 
* * * 
‘Ᾱdhunika-Saṁskṛta-Vāṅmaye Kāvya-Dhārā’
Research Article By : Dr. Harekrishna Meher
*
Courtesy : 
Published in  ‘Prāchī Prajñā’, 
Peer Reviewed Refereed Sanskrit E-Journal (ISSN 2348-8417),  
Volume-III, December 2016):  Shastra-Manjusha Section :  
Article Link :  
* * *
‘Prāchī Prajñā’  Journal Link :
 https://sites.google.com/site/praachiprajnaa/home
*
Shastra-Manjusha Article Section : Link
*
Kavya-Dhara Section : Saundarya-Panchakam Poem : Link : 
= = = = = = = = = = 

आधुनिक-संस्कृत-वाङ्मये काव्यधारा
डॉहरेकृष्ण-मेहेरः

(This article presents a glimpse of various aspects of Modern Sanskrit Literature with some main genres of kavya and their examples. Mahakavya, Khanda-kavya, Lahari-kavya, Giti-kavya, Haiku, Tanka, Sijo, Ghazal, Free-Verse, Novel, Story etc. are discussed here.)

उपक्रमः  
      संस्कृतं भाषाजननी-रूपेण सुपरिचितम् । संस्कृतेन सार्धं भारतीय-सभ्यतायाः भारतीय-संस्कृतेश्च सम्बन्धः नितरामन्तरङ्गो वर्त्तते । भारतवर्षस्य प्रान्तीय-भाषाणां साहित्यानि विशेषेण संस्कृत-साहित्य-द्वारा प्रभावितानि लक्ष्यन्ते । भारतीय-साहित्यस्य मूलतत्त्वं संस्कृतोपरि प्रतिष्ठितम् । संस्कृतमेका वैज्ञानिक-पद्धति-सम्पन्ना सम्मार्जित-भाषा राजते । आधुनिक-युगे तत्त्वविदां मतेन संस्कृत-भाषा सङ्गणक-यन्त्र-(कम्प्युटर्) -निमित्तम्   उपयोगिनी  सर्वोत्तमा भाषा भवितुं शक्यते । भारतीय-संविधानानुसारं संस्कृतम् आधुनिक-भारतीय-भाषा-रूपेण स्वीकृतमस्ति । सम्प्रति संस्कृत-विषये विभिन्न-विद्यालय-स्तरादारभ्य विश्वविद्यालयेषु उच्च-गवेषणा-पर्यन्तं विविधतया पारम्परिकाणां पुनः समकालिकानां काव्य-गीत-नाटक-कथादीनां पाठ्यक्रमाः सन्निवेशिताः सन्ति । अद्यतन-विज्ञान-युगे सङ्गणक-माध्यमेन अन्तर्जाले संस्कृतस्य विविध-क्षेत्रेषु सहस्राधिकाः लेख-सामग्री-समूहाः समुपलभ्यन्ते । देशविदेशेषु शताधिकाः संस्कृत-पत्रपत्रिकाः मुद्रित-रूपेण अन्तर्जाल-पत्रिका-रूपेण च प्रकाशिताः भवन्ति । अन्य-भाषासाहित्य-समूहवत् संस्कृत-साहित्येऽपि निर्वाचित-लेखकेभ्यः केन्द्र-साहित्य-अकादम्या भारतस्य विविध-संस्थाभिश्च वार्षिक-पुरस्कार-सम्मान-प्रदान-व्यवस्था वर्त्तते । प्रसिद्ध-संस्कृत-कविवर्यः आचार्य-डॉ.सत्यव्रत-शास्त्री संस्कृत-भाषायां ज्ञानपीठ-पुरस्कारस्य प्रथम-विजेता विराजते । भारतस्य विभिन्न-भाषासु संस्कृत-सम्बन्धिताः विविधाः पुस्तक-शोधलेखाः समुपलभ्यन्ते । आधुनिक-रूपेण संस्कृत-गीत-नाटकादीनि प्रसार्यन्ते । आकाशवाणी-दूरदर्शनादि-माध्यमेन संस्कृत-वार्त्ता-सहिताः विविधाः सांस्कृतिक-कार्यक्रमाः परिवेष्यन्ते । राष्ट्रीय-वैश्विक-स्तरेषु विविधानि संस्कृत-सम्मेलनानि देशविदेशेषु समनुष्ठीयन्ते । संस्कृतभाषायाम् आदिशङ्कराचार्य-श्रीमद्भगवद्गीता-चलचित्रानन्तरं प्रियमानसम्-नाम्ना आधुनिकं चलचित्रं प्रसारितम् । संस्कृत-सम्भाषण-शिविरादि-माध्यमेन देशविदेशेषु संस्कृतस्य प्रसार-प्रचाराश्चलन्ति । विदेशीय-विश्वविद्यालयेष्वपि संस्कृतोपरि नाना-शोधकार्याणि प्रवर्त्तन्ते ।  कथित-भाषा-रूपेणापि संस्कृतस्य महती भूमिका विद्यते । एवं संस्कृतस्य गतिशीलता प्रगतिशीलताऽपि दर्शनीया ।  

संस्कृते आधुनिक-विषय-प्रसङ्गाः  
     अद्यावधि संस्कृत-भाषा निरन्तरं प्रवहमाना विलसति । युग-रुच्यनुसारं प्रत्येकस्मिन् भाषा-साहित्ये किञ्चित् परिवर्त्तनं परिलक्ष्यते । अधुनातने वैज्ञानिक-युगे संस्कृत-साहित्यस्यापि किमपि परिवर्त्तनं स्पष्टमनुभूयते । केषाञ्चिद् विदुषां मतेन अष्टादश-शताब्द्याः अन्तिमभागे अथवा ऊनविंश-शताब्द्याः प्रथम-भागे आधुनिक-संस्कृत-साहित्यस्य  प्रारम्भो विचार्यते  संस्कृतस्य बहुमुखी-प्रतिभाशाली कविः गवेषकः साहित्यशास्त्रकारः आचार्य-अभिराज- राजेन्द्रमिश्रो मतं पोषयति यत् आधुनिक-संस्कृत-साहित्यस्य कालः त्रिधा विभाजितो भवितुं शक्यते : पुनर्जागरण-कालः १७८४-१८८४ ख्रीष्टाब्दःस्थापना-कालः १८८५-१९४६ ख्रीष्टाब्दःपुनः स्वर्णकालः अथवा स्वर्णयुगः १९४७-ख्रीष्टाब्दात् आरभ्य वर्त्तमान-पर्यन्तम् (द्रष्टव्या : आचार्य-मिश्र-सम्पादिता साहित्य-अकादमी-दिल्ली-द्वारा प्रकाशिता कल्पवल्ली,-पृष्ठायां प्रदत्ता नान्दीवाक् भारतस्य स्वाधीनतोत्तर-कालादद्यावधि संस्कृतस्य विशेषप्रगति-समृद्धि-कारणादेव कालोऽयं स्वर्णयुग-रूपेण विविच्यते  कतिपय-विद्वांसः समकालिकः’, 'समकालीनः’ अथवा आधुनिकः’ इति शब्दस्य स्थाने (प्राचीनस्य विपरीतः)   अर्वाचीनः’ इति शब्दस्यापि प्रयोगं कुर्वन्ति ।   

      समकालिक-संस्कृत-साहित्ये युगरुच्या सार्धमन्य-भाषासाहित्यानां प्रभावादपि कतिपय-नूतन-प्रवृत्तीनां समावेशो परिदृश्यते । आधुनिकी दृष्टिभङ्गीसाम्प्रतिके सङ्घर्षमय-समाजे नाना-समस्याःतासां समाधानार्थं मार्गदर्शनम्जीवनस्य विविधानुभूतयःनारी-समस्यानारी-चेतनानारी-जागरणंदुर्नीतिःभ्रष्टाचाराः राजनीतिक-स्थितिःराष्ट्र-भावनादेशात्मबोधकताभारतीय-संस्कृते-र्महनीयताभौतिक-सभ्यतायाः विविधाः दिशाःपाश्चात्य-सभ्यतायाः अन्धानुसरणं तज्जन्य-विपर्ययश्चमहानगरनिवासिनां निम्नवर्गीय-जनानां च जीवनधारण-पद्धतिःउच्च-नीचवर्गेषु सङ्घर्षःसामाजिकं प्राचुर्यं दैन्यं चकतिपय-स्थलेषु मान्य-परम्परां प्रति उपेक्षा,   आधुनिकता-परम्परयोः समन्वयःनवसर्जनायाः समुत्साहःप्रगतिशील-नव्यशैल्या रचनासौन्दर्यबोधः,  समकालिक-जीवनप्रवृत्तिःग्रामीण-जीवनम्महाकाव्यादिषु आधुनिकानामादर्श-पुरुष-महिलानां नायक-नायिकात्व-चित्रणम्उपन्यास-कथादिषु साधारण-मानवस्य मुख्यचरित्र-प्रतिपादनं चेत्यादयो विषयाः आधुनिक-साहित्ये चर्चिताः दृग्गोचरीभवन्ति । परम्परावादः अथवा शाश्वततावादःआधुनिक-युगानुकूलाः विविधाः रूपकल्पाः पाश्चात्यवादस्य प्रभावःएकबिम्बवादःप्रतीकवादःवास्तववादःपरावास्तववादश्चेत्यादीनि नव्य-तत्त्वानि सन्निवेशितानि परिलक्ष्यन्ते । आधुनिक-जीवने विषादभावःमृत्यु-चेतनासंस्कारधर्मितासांस्कृतिक-मूल्यबोधःनैसर्गिक-सामाजिक-परिवेशःपर्यावरण-तत्त्वम्वैश्विक-चेतनाआन्तरराष्ट्रीयतादार्शनिक-चिन्तनम्आध्यात्मिकताधार्मिकताआस्तिकताकला-सङ्गीत-दर्शनानां सम्मिश्रणम्संस्कृते समकालिक-विषय-प्रसङ्गानां प्रयोग-सामर्थ्यं चेत्यादयो नानाविषयाः आधुनिक-संस्कृत-साहित्ये समाविष्टाः सन्ति ।  

आधुनिकी  रचना-शैली :
    आधुनिक-दृष्ट्या यदि विचार्यतेआधुनिक-संस्कृत-साहित्यस्य रचनावल्यां भाषायाः सरलतया सह सुबोधता स्पष्टं समवलोक्यते । अत्र जटिलता अथवा क्लिष्टता प्रायो नास्ति । प्रसाद-गुणस्य वैदर्भी-रीतेश्च बाहुल्यं समनुभूयते ।  भाषाभिव्यक्तौ किञ्चित् परिवर्त्तनमपि सञ्जातम् । आधुनिक-युगरुच्यनुकूलं संस्कृत-साहित्यस्य स्वरूपे तस्य रचना-शैल्यामपि भिन्नता दृश्यतेनूतनता च प्रतीयते । रक्षणशीलतायाः स्वल्प-दूरे स्थित्वा संस्कृतस्य आधुनिकीकरण-सरलीकरण-माध्यमेन प्रयोजनानुसारं नूतन-शब्दानां संयोजनमपि दृक्पथे समायातियेन संस्कृतस्य मूल-स्वरूपे न काचिद् विकृतिःन च हानिः स्यात् । कतिपये रक्षणशीलाः लेखकाः संस्कृते आधुनिक-शब्द-प्रयोगं भिन्नदृशा पश्यन्ति ।  एवं शब्दं प्रति सुरुचिः अथवा अरुचिः वैयक्तिक-स्तरे एव सीमिता जायते  प्रगतिशीलाः लेखकाः संस्कृतस्य मर्यादां सुरक्षितां विधाय लेखनी-चालनायां  तत्पराः विद्यन्ते । आधुनिक-युगे नूतन-वस्तूनामुद्भावना आविष्कारश्चबहुलोक-प्रचलनं च आधुनिक-शब्द-व्यवहारस्य आधाराः वर्त्तन्ते । अतः संस्कृतेतरासु बहुकथित-भारतीय-भाषासु बहु-प्रचलितानां शब्दानां संस्कृते प्रयोजनानुसारं यथासंभवं सुरुचिपूर्वकं संस्कृतायित-रूपेण, अपरिवर्त्तित-रूपेण अथवा  ईषत्-परिवर्त्तित-रूपेण प्रयोगकरणे नासङ्गतिः प्रतीयते । संस्कृतस्य आधुनिक-प्रयोग-प्रसार-विषये दृक्-पत्रिकायाः २००५-२००६- वर्षे  प्रकाशितेषु १३-१४-१५-१६-१७-अङ्केषु विशेषेण चर्चा विहितास्ति 

  आधुनिकसाहित्ये अनुप्रासःउपमायमकम्रूपकम्श्लेषःउत्प्रेक्षाअर्थान्तरन्यासःस्वभावोक्तिःकाव्यलिङ्गम्, अपह्नुतिश्चेत्यादयः प्रचलिताः अलङ्काराः प्रयुक्ताः समवाप्यन्ते । पारम्परिकैः संस्कृत-च्छन्दोभिः सार्धमाधुनिक-रुच्यनुरूपं कतिपय-विदेशीय-च्छन्दसामप्यन्तर्भुक्तिः साम्प्रतिक-साहित्ये दृक्पथमायाति । भारतस्य अन्यान्य-प्रान्तीय-साहित्यवत् आधुनिक-संस्कृतसाहित्येऽपि विजातीय-काव्य-विधानां छन्दसां संयोजना विहितास्ति  । यथाजापान-देशीयं हाइकु-छन्दः तान्का-छन्दश्चपुनः कोरिया-देशीयं सिजो-छन्दः । एतानि त्रीणि स्वस्व-गुणानुसारं काव्यविधाः सन्तिनिर्धारित-वर्णक्रमेण सज्जितत्वात्  छन्दांसि अपि कथ्यन्ते । एतानि सर्वाणि संक्षिप्तत्वात्सारगर्भकत्वाद् रस-भावोद्दीपकत्वाच्च आधुनिक-संस्कृते अनुकूल-रूपेण प्राप्तस्थानाः वर्त्तन्ते । एतेषां मिश्रितरूपैरपि  आधुनिकाः कविताः प्रणीताः लोक्यन्ते । उर्दू-पारस्य-भाषागता गजल्-गीतिःआङ्ग्लभाषायाः सॉनेट् अर्थात् चतुर्दश-पङ्क्ति-कवितासंस्कृते मौलिकानि स्वोद्भावितानि विविध-मात्रिक-गीतिच्छन्दांसिकतिपयानां प्रादेशिक-लोकगीतानां छन्दांस्यपि संस्कृते अन्तर्भुक्तानि सन्ति । हिन्दी-प्रभावात् कुण्डलिया (कुण्डली)-छन्दःक्षणिका इति कविता-प्रवृत्तिरपि संस्कृते अन्तर्भुक्ता प्रयुज्यते । छन्दो-योजना लेखकस्य रुच्यनुरागोपरि निर्भरं करोति । मुक्तच्छान्दसस्य छन्दोमुक्तस्य वा काव्यस्य बहुलं प्रणयनं साम्प्रतिके संस्कृत-साहित्ये दृष्टिगोचरं भवति ।  लेखकानां वैयक्तिक-रुचौ यद्यपि विभिन्नता विद्यतेतथापि पारम्परिकतायाः आधुनिकतायाश्च समन्वयो विशेषं महत्त्वमर्हति ।  
  
   ऊनविंश-शताब्द्याः अन्तिम-दशके आधुनिक-संस्कृत-साहित्ये कविः भट्ट-मथुरानाथ-शास्त्री (साहित्यवैभवम्-ग्रन्थस्य प्रणेता), पण्डिता-क्षमारावः, (कथापञ्चकम्शेवधिःमीरालहरी चेत्यादीनां कवयित्रीचेत्यादीनां काव्य-कथाकाराणां भूमिका प्रणिधानयोग्या । परवर्त्तिनि काले संस्कृतस्य अनेके प्रतिभाशालिनः कवयःजानकीवल्लभ-शास्त्रीबच्चूलाल-अवस्थीबटुकनाथ-शास्त्रीहरिश्चन्द्र-रेणापुरकरःरामकरण-शर्मासत्यव्रत-शास्त्रीवेदकुमारी-घईश्रीनिवास-रथःजगन्नाथ-पाठकःरेवाप्रसाद-द्विवेदीहरिराम-आचार्यःकलानाथ-शास्त्रीरमाकान्त-शुक्लःअभिराज-राजेन्द्र-मिश्रःशिवजी-उपाध्यायःरहसबिहारी द्विवेदीप्रभुनाथ-द्विवेदीप्रशस्यमित्र-शास्त्रीहरिदत्त-शर्माराधावल्लभ-त्रिपाठीकृष्णदत्त-शर्माकेशवचन्द्र-दाशःइच्छाराम-द्विवेदीदिगम्बर-महापात्रःपुष्पा-दीक्षितःभास्कराचार्य-त्रिपाठीगोविन्दचन्द्र-पाण्डेयःहर्षदेव-माधवःहरेकृष्ण-मेहेरःजनार्दनप्रसाद-पाण्डेयःबनमाली बिश्वालःरवीन्द्रकुमार-पण्डानारायण-दाशःअन्ये च बहवो लेखकाः आधुनिक-संस्कृतसाहित्यस्य समृद्धि-गौरव-वर्धनार्थं सहायकाः वर्त्तन्ते ।  

संस्कृत-साहित्यस्य आधुनिकं परिदृश्यम् : 
     प्रस्तुत-लेखस्य मुख्यमुद्देश्यमस्ति आधुनिक-संस्कृत-साहित्यस्य संक्षिप्त-रूपरेखा-समुपस्थापनम्, विशेषतः काव्य-दिशायाः भारतीय-भाषासाहित्येषु यद्वत् नाना-साहित्यिक-विभागाः सन्ति, तद्वत् आधुनिक-संस्कृत-साहित्येऽपि विद्यन्ते । पारम्परिकं महाकाव्यम्, खण्डकाव्यम्, गीतिकाव्यम्, दूतकाव्यम्, चम्पूकाव्यम्, स्तोत्रकाव्यम्,  नाटकम्, कथा चेत्याद्याः रचनाः वर्त्तमान-कालेऽपि प्रणीयन्ते । एतत्सार्धं पूर्वतः अनामिताः विभागाः प्रवृत्तयो वा साम्प्रतिके साहित्ये अन्तर्भुक्ताः सन्ति । लेखेऽस्मिन् विषयाणामेतेषां सामान्य-विवरण-प्रदानार्थं कृतोऽस्ति प्रयासः ।  

    आधुनिक-संस्कृत-साहित्यस्य काव्य-श्रेण्यां महाकाव्यम् (यथाकवि-सत्यव्रत-शास्त्रिणः बोधिसत्त्व-चरितम्श्रीराम कीर्त्ति-महाकाव्यं चरेवाप्रसाद-द्विवेदिनः स्वातन्त्र्य-सम्भवम्श्रीधरभास्कर-वर्णेकरस्य शिवराज्योदय-महाकाव्यम्अभिराज-राजेन्द्र-मिश्रस्य वामनावतरणम्दिगम्बर-महापात्रस्य सुरेन्द्रचरित-महाकाव्यम्), रागकाव्यम् (राधावल्लभ-त्रिपाठिनः गीतधीवरम्), लहरीकाव्यम् (राधावल्लभत्रिपाठिनः धरित्रीदर्शन-लहरी), चम्पू-काव्यम् (जयकृष्णमिश्रस्य मातृमुक्ति-मुक्तावली), मौलिक-नूतनच्छन्दोभिः प्रणीतं गीतिकाव्यम् (श्रीनिवास-रथस्य तदेव गगनं सैव धराहरेकृष्ण-मेहेरस्य मातृगीतिकाञ्जलिः), लघुकाव्यं खण्डकाव्यं वा (गोविन्दचन्द्र-पाण्डेयस्य भागीरथीरामकरण-शर्मणः सर्वमङ्गला), दूतकाव्यम् (रामचन्द्र-अम्बिकादत्त-शाण्डिल्यस्य कामदूतम्इच्छाराम-द्विवेदिनः मित्रदूतम्), अन्यापदेश-काव्यम् (अभिराज-राजेन्द्रमिश्रस्य आर्यान्योक्ति-शतकम्बदरीनाथ-शर्मणः अन्योक्ति-साहस्री), स्तोत्र-काव्यम् (श्रीसुन्दरराजस्य बदरीशतरङ्गिणीविन्ध्येश्वरीप्रसाद-मिश्रस्य महाकालेश्वरस्तुति-पञ्चरत्नम्), हास्य-व्यङ्ग्य-काव्यम् (प्रशस्यमित्र-शास्त्रिणः हास-विलासः), उपनिषदीयम् अथवा दार्शनिकं काव्यम् (हर्षदेव-माधवस्य  प्रकाशोपनिषद्), नव्यशतक-काव्यम् (हर्षदेव-माधवस्य मृत्यु-शतकम्), मुक्तच्छन्दोबद्धम् अथवा छन्दोमुक्तं काव्यम्  (हर्षदेव-माधवस्य निष्क्रान्ताः सर्वेहरेकृष्ण-मेहेरस्य अस्रमजस्रम्)हाइकु-सिजो-तान्कादि-काव्यम् (हर्षदेव-माधवस्य ऋषेः क्षुब्धे चेतसिहरेकृष्ण-मेहेरस्य हासितास्या वयस्या)सॉनेट् अथवा चतुर्दशपङ्क्ति-कविता (वीरेन्द्रकुमार-भट्टाचार्यस्य कलापिका), गजल्-गीतिः अथवा गलज्जलिका (अभिराज-राजेन्द्र-मिश्रस्य  मृद्वीका, शालभञ्जिका च), वासरिक-कविताकब्बाली (काव्याली)-प्रमुखानि लोकगीतानि (कमलेशमिश्रस्य कमलेश-विलासः), प्रहेलिका-काव्यम् (रामाशीष-पाण्डेयस्य प्रहेलिका-शतकम्), विमान-काव्यम् (प्रभाकरनारायण-कबठेकरस्य भूलोकविलोकनम्रमाकान्तशुक्लस्य वैमानिकम्अभिराज-राजेन्द्रमिश्रस्य विमानयात्रा-शतकम्), यात्रा-काव्यम् अथवा भ्रमण-काव्यम् (सत्यव्रतशास्त्रिणः थाइदेश-विलासम्ओम्प्रकाश-पाण्डेयस्य रसप्रिया पेरिस-राजधानीरेवाप्रसाद-द्विवेदिनः अमेरिका), चरित-काव्यम् (रामजी-ठाकुरस्य लीलाशुकीयम्)शिशु-कविता अथवा बाल-कविता (दिगम्बर-महापात्रस्य ललित-लबङ्गम्हरिदत्त-शर्मणः बालगीताली, इच्छाराम-द्विवेदिनः बाल-गीताञ्जलिः), सूक्ति-कविता (हरेकृष्ण-मेहेरस्य सूक्ति-कस्तूरिका) चेत्यादीनि विविध-विभाजनानि आधुनिक-दृष्टिभङ्गी-समेतं समुपलभ्यन्ते ।    

  पारम्परिक-गद्यकाव्यस्य द्विविधं विभाजनं विद्यतेकथा, आख्यायिका चेति । एतत्सार्धमाधुनिकाः नैके विभागाः (विधाः प्रवृत्तयो वासन्ति । अत्र वर्त्तन्ते उपन्यासः (यथा रामकरण-शर्मणः रयीशःकेशवचन्द्र-दाशस्य ऋतम्,  कलानाथ-शास्त्रिणः जीवनस्य पाथेयम्नारायण-दाशस्य वह्नि-वलयः), लघु-उपन्यासः उपन्यासिका वा  (राधावल्लभ-त्रिपाठिनः करुणा), दीर्घकथा (अभिराज-राजेन्द्रमिश्रस्य इक्षुगन्धाबनमालि-बिश्वालस्य जिजीविषा), लघुकथा (केशवचन्द्र-दाशस्य ऊर्मिचूड़ाबनमालि-बिश्वालस्य बुभुक्षाप्रशस्यमित्र-शास्त्रिणः अनभीप्सितम्रवीन्द्रकुमार-पण्डा-कृता छिन्नच्छाया), टुप्-कथा अथवा लघु-लघुकथाया आङ्ग्ल-भाषायां शर्ट्-शर्ट् स्टोरीनाम्ना परिचिता  (प्रमोदकुमार-नायकस्य कथा-सप्ततिः), नव्य-कथा (राधावल्लभ-त्रिपाठिनः अभिनव-शुकसारिका), अरण्य-कथा (अभिराज-राजेन्द्रमिश्रस्य कान्तार-कथा), स्पश-कथाया आङ्ग्ल-भाषायां डिटेक्टिव् स्टोरी’ इति कथ्यते (जनार्दन-हेगड़े-कृतः व्यूहभेदःनारायण-दाशस्य हत्याकारी कः), त्रासद-कथा (नारायण-दाशस्य नरेन्द्रपुरीयं रेलस्थानकम्), हास्य-व्यङ्ग्य-कथा (प्रमोदकुमार-नायकस्य उवाच कण्डु-कल्याणः), शिशुकथा अथवा बालकथा (केशवचन्द्र-दाशस्य  एकता, महान्), यात्रा-वृत्तान्तः (दिगम्बर-महापात्रस्य पाश्चात्य-संस्कृतम्चेत्यादयः । साम्प्रतिके संस्कृते कथा’-शब्द-निमित्तं कथानी’ इति, ‘कथानिका’ इति शब्दोऽपि प्रचलितो दृश्यते    

  आधुनिक-संस्कृत-साहित्यस्य रूपक-श्रेण्यां विद्यन्ते नाटकम् (यथारमाकान्त-शुक्लस्य पण्डितराजीयम्), एकाङ्कि-नाटकम् अथवा एकाङ्किका (राधावल्लभ-त्रिपाठिनः प्रेक्षण-सप्तकम्), वीथी-नाटकम् अथवा पथप्रान्त-नाटकम्यत्  आङ्ग्ल-भाषायां स्ट्रीट् प्ले’ इति निगद्यते (अभिराज-राजेन्द्रमिश्रस्य चतुष्पथीयम्), रेडियो-नाटकम् (रमाकान्त-शुक्लस्य नाट्यसप्तकम्देवर्षि-कलानाथशास्त्रिणः नाट्य-वल्लरी), नृत्य-नाटिका (नलिनी-शुक्लायाः पार्वती-तपश्चर्या), गीति-नाट्यम् (भवालकरस्य पार्वती-परमेश्वरीयम्), शिशु-नाटकम् अथवा बाल-नाटकम् (पण्डा-रवीन्द्रकुमारस्य यो मे भक्तः  मे प्रियःचेत्यादयो विभागाः  गद्य-साहित्यान्तर्गतायां ललितनिबन्ध-रचनायां भट्ट-मथुरानाथ-शास्त्रीदेवर्षि-कलानाथ-शास्त्रीहृषीकेश-भट्टाचार्यःपरमानन्द-शास्त्री चेत्यादीनां सारस्वत-साधकानां लेखनी स्मरणीया ।   
   आधुनिक-संस्कृत-साहित्यस्य गद्य-पद्य-विभागद्वये अनुवाद-साहित्यमपि वर्त्तते । अत्र सन्ति गोविन्दचन्द्र-पाण्डेयस्य अस्ताचलीयम्’ (आङ्ग्ल-कवितानुवादः)लक्ष्मीनारायण-जोषिणः आङ्ग्ल-रोमाञ्चम् (आङ्ग्ल-कवितानुवादः), जगन्नाथ-पाठकस्य गालिब-काव्यम्अनन्तत्रिपाठि-शर्मणः यथा ते रोचते’ इति शेक्शपियर-नाटकानुवादः,  भागीरथि-नन्दस्य ओड़िआ-भाषातः याज्ञसेनी-उपन्यासानुवादःहरेकृष्ण-मेहेरस्य ओड़िआ-भाषातः तपस्विनी-महाकाव्यानुवादःनारायण-दाशस्य ओड़िआतः वात्यासारः-कथानुवादश्चेत्याद्याः कृतयः पाठकसमाजे  परिचिताः ।    

   पारम्परिके काव्यशास्त्र-विभागे मम्मटाचार्य-कृतः काव्यप्रकाशःविश्वनाथकविराज-कृतः  साहित्यदर्पणः’ इति ग्रन्थद्वयं सुविदितम् । तद्वत् आधुनिक-संस्कृतसाहित्य-विवेचना-पराणि नव्यानि काव्यशास्त्राणि विरचितानि सन्ति । एषु नवीन-काव्यशास्त्रेषु रेवाप्रसाद-द्विवेदिनः काव्यालङ्कार-कारिकाअभिराज-राजेन्द्रमिश्रस्य अभिराज-यशोभूषणम्राधावल्लभ-त्रिपाठिनः अभिनव-काव्यालङ्कारसूत्रम्रहसबिहारी-द्विवेदिनः नव्यकाव्यतत्त्व-मीमांसा’ चेत्यादयो ग्रन्थाः समुल्लेखनीयाः । एतेषु आधुनिक-काव्य-नाटकोपन्यास-कथादीनां लक्षणादि-विवेचन-समेतं विविधालङ्कारिक-तत्त्वानां वर्णनमुपलभ्यते । शृङ्गार-हास्य-करुणादि-नवरसैः साकं बहुपूर्वत एव भक्ति-वात्सल्य-रसयोरन्तर्भवनं दृश्यते । आधुनिक-साहित्ये नव्य-साहित्यशास्त्रिणा रहसबिहारी-द्विवेदिना राष्ट्रभक्तिः’ इति स्वतन्त्र-रसः प्रतिपादितोऽस्ति ।

  सौन्दर्यतत्त्वचर्चायां शिवजी-उपाध्यायस्य ‘सौन्दर्यशास्त्रम्’, गोविन्दचन्द्र-पाण्डेयस्य सौन्दर्य-दर्शन-विमर्शःरेवाप्रसाद-द्विवेदिनः सौन्दर्य-पञ्चाशिकाहरेकृष्ण-मेहेरस्य सौन्दर्य-सन्दर्शनम्’ चेत्याद्याः कृतयः आधुनिक-दृष्ट्या समुपादेयतां वहन्ति । आधुनिक-नव्यानि छन्दः-शास्त्राणि च प्रणीयन्ते । अभिराज-राजेन्द्रमिश्रस्य छन्दोऽभिराजीयम्रामकिशोर-मिश्रस्य छन्दस्कलावतीहरेकृष्ण-मेहेरस्य मेहेरीय-छन्दोमाला’ चेत्यादयः कृतयः आधुनिक-छन्दो-व्यवहार-दिशायां नव्यनिर्माणस्य नव्य-समुच्चारणस्य च विशेषत्वं प्रदर्शयन्ति । आधुनिक-संस्कृते काव्य-प्रणयनविषये कवि-गवेषक-साहित्यशास्त्रिणः आचार्य-अभिराज-राजेन्द्रमिश्रस्य मतं प्रणिधेयम् । वर्त्तमान-युगस्य संस्कृतकाव्य-रचना-प्रसङ्गे रक्षणशीलतायाः शैथिल्यं विधाय आचार्य-मिश्रेण आधुनिक-लेखकवर्गं प्रति प्रोत्साहाः प्रदत्ताः । स्वीये अभिराज-यशोभूषणम्’ इति नव्य-साहित्यशास्त्र-ग्रन्थे  तेन विशदमभिव्यक्तम्   
हाइकु-तानका-सीजो-सॉनेट-लीरिकादयः ।
काव्यभेदा विजातीयाः प्रणीयन्तेऽधिसंस्कृतम् 
आदानं  प्रदानं  सम्भवत्येव साम्प्रतम् 
नैकभाषा-नदीष्णेषु सत्सु संस्कृत-सूरिषु 
कवयो नावरोद्धव्या एवंप्रणयिनस्ततः ।  
अभिनन्द्यस्तदुत्साह इत्यभिराज-सम्मतम् ॥
(प्रकीर्णतत्त्वोन्मेषःकारिका १११-११३पृ.३१७)  
  आचार्य-मिश्रस्य आशयः एवं भवति यत् साम्प्रतिके साहित्ये कतिपयाः विजातीयाः काव्यविधाः हाइकु-तानका-सीजो-सानेट्-लीरिक्-प्रभृतयो व्यवह्रियन्ते । अनेन प्रयोगेण अनेकभाषा-प्रवीणेषु विद्वत्सु परस्परं सारस्वत-भाव-विनिमयः सम्भवति । ये कवयो हाइकु-प्रभृति-काव्यविधाराजिमाश्रित्य कवितां रचयन्तितेषामुत्साहः अभिनन्दनीयःतेषां कृते बाधा न विधेया । वस्तुतः प्रवीण-साहित्यशास्त्रिणः आधुनिक-युगचेतनया सह आधुनिकी दृष्टिभङ्गी लेखकानां कृते आन्तरिकीं बह्वीं प्रेरणां प्रयच्छति । 

आधुनिक-संस्कृत-साहित्यस्य कतिपयाः प्रमुख-विधाः  
   साम्प्रतिक-संस्कृत-साहित्यस्य विस्तारः अत्यन्त-विपुलः । सविनयं निवेद्यते यत् प्रस्तुते सीमिते लेखे सकल-वर्गाणामुदाहरण-परिवेषणं न सम्भवति । अत्र पाठकानां समवगत्यर्थं विविध-विभागानां स्वल्पानि उदाहरणानि प्रदीयन्ते । तानि मुख्यरूपेण मूल-पुस्तकेभ्यःसङ्कलित-पुस्तकेभ्यःविविध-पत्रपत्रिकाभ्यःसमीक्षा-ग्रन्थेभ्यश्च साभारं गृहीतानि सन्ति ।   

महाकाव्यम् :  
  आधुनिक-संस्कृतसाहित्ये पारम्परिक-शैल्याऽपि महाकाव्यानि प्रणीयन्ते । अत्र परन्तु प्रसङ्गानुकूलानां सामाजिक-विषयाणामाधुनिकतायाश्च स्पर्शः समनुभूयते । कवि-सत्यव्रत-शास्त्रिणः श्रीगुरुगोविन्दसिंह-चरितम्’ इति महाकाव्यम् एका समुल्लेखनीया कृतिः । इन्द्रवज्रा-वंशस्थोपजात्यादिभिः पारम्परिकै-र्विविधैश्छन्दोभिः प्रणीतमिदं महाकाव्यम् । उदाहरणस्वरूपम्महादेव-रुद्रेण सहमहाभारतीय-धनुर्धर-वीरेण अर्जुनेन सहापि उपमां प्रदाय शिख-धर्मगुरोः श्रीगुरुगोविन्द-सिंहस्य वीरत्व-वर्णन-प्रसङ्गे कविना निगदितम् :     
गुरुस्तदा रुद्र इव प्रजानां / संहार-काले भयमादधानः 
बाणान् प्रवर्षन् परितः प्रसर्पन् / चञ्चद्-द्विजिह्वानिव भीमरूपान्   
एको बहूनात्त-धनु-र्मनस्वी / व्यनाशयत् तीव्र-बलेन वीरः   
गाण्डीव-धन्वेव रिपोश्चमूनां चकार घोरं कदनं  तत्र  (श्रीगुरुगोविन्दसिंह-चरितम्)  

    कवि-हरिनारायण-दीक्षितस्य भीष्मचरितम्-महाकाव्यात् समानीतमेकमुदाहरणम् । सामाजिक-परिवेशे पुत्रीं प्रति हेया दृष्टिः कदापि न विधेया । उभयोः पुत्र-कन्ययोः यथासम्भवमुत्तम-लालन-पालनं शिक्षा-प्रदानमप्यावश्यकं भवति । प्रसङ्गतः उपेन्द्रवज्रेन्द्रवंशामिश्रितेन उपजाति-छन्दसा रचिते श्लोके कवेरभिप्रायो व्यक्तः इत्थम् :  
सुपाठनीयाः सुतवत् सुताऽपि / भेदो विधेयो   तत्र कश्चन 
गार्हस्थ्य-यानस्य कृते ह्युभाविमा-/वावश्यकौ स्तो रथचक्र-सन्निभौ ’  
(भीष्मचरितम्दृक्२४-२५ अङ्कपृ.१९९)

   पण्डित-प्रभुदत्त-शास्त्रिणः गणपति-सम्भवम्’-महाकाव्यात् पद्यमेकं प्रस्तूयते । काव्येऽस्मिन् कथास्ति यद्यपि पौराणिकी, तथापि आधुनिक-भारतस्य गणतन्त्र-व्यवस्थाऽपि अत्र सङ्केतिता । गणपति-प्रशासन-चित्रण-माध्यमेन  कविना भारतवर्ष-प्रशासनस्य मार्गदर्शन-प्रयासः संलक्ष्यते । जन-गणस्य आन्तरिकाभिलाषः कवि-लेखन्यां व्यक्तीकृत इव प्रतीयते । शार्दूलविक्रीड़ित-छन्दसा प्रणीते श्लोक-द्वये कविः कथयति :  
यस्मिन् दूषक-मूषकोऽपि  भजेन् मृत्युं क्षुधा-पीड़ितः / 
किं यः स्यान् मनुजो गजेन सदृशो नेता समाजस्य वा 
हस्ते मोदकवान् परं  कमलान्निर्लिप्ततां द्योतयेत् /  
पर्शुं दुष्ट-कृते  ते त्वभयितां दध्यादिदं शासनम् 
(गणपति-सम्भवम्९म सर्गदृक्अङ्क-पृ.२८)  

    कवेः अभिराज-राजेन्द्र-मिश्रस्य जानकीजीवनम्-महाकाव्यादेकमुदाहरणम्  रामायणीय-कथामवलम्ब्य कविना आधुनिक-रूपेण सीतादेव्याः जीवन-चरितं वर्णितम् । प्रसङ्गक्रमेण वंशस्थ-छन्दोयोजनया रचिते श्लोके भवन-वर्णना नितरां मनोहारिणी भातिएकावली नामालङ्कारोऽपि दर्शनीयः । कवेरभिव्यक्तौ :   
 तद् गृहं यन्  विकीर्ण-गीतकं  गीतकं व्यायत-मूर्च्छनं  यत्   
 मूर्च्छनं यन्  रसाक्त-वाचिकं /  वाचिकं यन्  सुधा-सहोदरम्  (जानकीजीवनम्/)  

   कवि-सुभाष-वेदालङ्कारस्य अमेरिका-वैभवम्’ इति महाकाव्यतः प्रस्तूयते श्लोकः एकः । कविना आत्मनः अमेरिकायात्रा-सम्बन्धिनी विवरणी अत्र वर्णिता । अमेरिकायाः अटलाण्टा-नगर-वर्णनायां शिखरिणी-छन्दोबद्धं पद्यमीदृशम् 
अहो दृष्टं रम्यं नगरमटलाण्टेति विदितं / 
समागत्याकाशादनिल-चपलाद्यानत इह 
विमानानां भव्यं स्थलमिदमहो दृष्टि-पतितं / 
विशालं सच्चैतन् ननु सुरमणीयं सुखकरम्   
(अमेरिकावैभवम् दृक्२८-२९ अङ्कपृ.१०४)    

खण्डकाव्यम्लघुकाव्यम् :   
   आधुनिक-संस्कृते खण्डकाव्यस्य लघुकाव्यस्य वा प्राचुर्यं समनुभूयते । अस्मिन् प्राकृतिक-वर्णनया सार्धं मानवानां प्राणिनां च विविधानामनुभूतीनां दशानां च सरसं चित्रणं समवलोक्यते । उदाहरण-स्वरूपमत्र कवि-गोविन्दचन्द्र-पाण्डेयस्य भागीरथी’-काव्यतः प्रस्तूयते शिशिर-प्रभातस्य मनोरम-दृश्यमेकम्  उपमोत्प्रेक्षालङ्कार-सम्मिश्रणेन इन्द्रवज्रा-छन्दसा प्रणीते श्लोके वर्णनं विद्यते एवंभूतम्  
प्राभातिकः शैशिर आतपोऽयं हासो यथा हर्षित-बालकानाम् ।  
पद्मायते विश्वमिदं समन्तात् आलोकपायीनि विलोचनानि  (भागीरथीपृ.७७)   

    कवि-सत्यव्रत-शास्त्रिणः शर्मण्यदेशः सुतरां विभाति’ इति खण्डकाव्यादेकं पद्यम् । कविना जर्मनी-शब्दस्य कृते संस्कृते शर्मण्य-शब्दस्य प्रयोगः कृतः । अस्य देशस्य शस्यभूमि-पुष्करिण्यादीनां मञ्जुल-चित्रणे उपजाति-छन्दोबद्धः एकः श्लोकः प्रस्तुतोऽस्ति एवम्  
अकृष्टपच्यं खलु यत्र शस्यं हृद्यास्तथा शाद्बल-भूमिभागाः 
दीर्घाश्चकासत्यथ दीर्घिका सः / शर्मण्यदेशः सुतरां विभाति ’ (शर्मण्यदेशः सुतरां विभाति)   

कवि-रामकरण-शर्मणः सर्वमङ्गला-कविता-सङ्कलनायाः अन्तर्गतात् निरुत्तर-शतकम्’ इति काव्यतः प्रस्तूयते उदाहरणमेकम् । मानस-विहारशीलस्य राजहंसस्य क्षुद्र-जलाशये विचरणम्पुनः काकस्य मानस-सरोवरे सौख्यमय-विहारश्चेत्यादेः योग्यायोग्यता-विचारणा अत्र प्रणिधानमर्हति । पञ्चचामर-छन्दसा प्रणीतं सम्पृक्तं पद्यमीदृशम् :
विरौति राजहंस एष पल्वले विचक्षणः   
परन्तु वायसः सुखं समेधतेऽत्र मानसे 
किमस्ति कृत्रिमः क्रमोऽथवाऽस्त्ययं निसर्गजः
समादधानि किं कथं भवाम्यहं निरुत्तरः  (निरुत्तर-शतकम्

    कवि-दिगम्बर-महापात्रस्य रुषिया-शतकम्-काव्यतः एकमुदाहरणमुपस्थाप्यते । रुषिया-देशस्य कला-स्थापत्यानां नितरामाकर्षणीय-सौन्दर्यवर्णनमत्र श्लोके वर्त्तते । वसन्ततिलकाछन्दसा विरचितं तत्पद्यमित्थम् :  
किं वर्णयानि रुषियां बहुरङ्ग-युक्तां  
स्थापत्य-चित्रबहुला  खलु यत्र शालाः ।  
सप्राणवत्-प्रतिकृतिप्रचया विभान्ति  
हट्टे चतुष्पद-तटे  स्फुटमेव वाटे  (रुषिया-शतकम्दृक्अङ्क-२८-२९पृ.१०२)

गीतिकाव्यम् 
     वैदिक-साहित्यस्य सामवेदात् गीतेर्गीतस्य वा परम्परा सुप्रतिष्ठिता । पारम्परिक-गीतिषु वर्णच्छन्दोबद्धानि  मात्राच्छन्दोबद्धानि च पद्यानि प्राप्यन्ते । आदिशङ्कराचार्यस्य चर्पट-पञ्जरिका-स्तोत्रम् (भज गोविन्दम्), कवि-जयदेव-प्रणीतं काव्यं गीतगोविन्दम्’ चेत्यादीनि जन-समाजे अद्यापि विशेषेण लोकप्रियतां वहन्ति । आधुनिक-साहित्ये गीतिकाव्यस्य नैकं विभाजनं कर्त्तुं पार्यतेपारम्परिक-वर्णच्छन्दोबद्धा गीतिःपारम्परिक-मात्राच्छन्दोबद्धा गीतिःआधुनिक-मौलिक-स्वोद्भावितैः मात्राच्छन्दोभिः प्रणीता गीतिश्चेत्यादिकम् । उदाहरणानि कतिपयान्यत्र परिवेष्यन्ते   

    आधुनिक-गीतिकवेः श्रीनिवास-रथस्य तदेव गगनं सैव धरा’ इति कविता-सङ्ग्रहात् कियदंशः समुल्लेखनीयः ।  आधुनिक-समाजे कलुषित-जीवनस्य दुर्गति-राजिं परिलक्ष्य कविना दुःखित-चेतसा निगदितं यत् जीवन-लता पत्र-विहीना कण्टक-बहुला च सञ्जातापुनः पुष्पाणां प्रस्फुटनं तु बहुदूरम् । कवि-श्रीरथस्य अभिव्यक्तौ पद्यमिदम् :  
विपत्रितेयं  जीवन-लतिका
केवल-कुटिल-कण्टकाकलिता दूरे कुसुम-कथा ।  
सूर्ये तपति तमिस्रा प्रभवति,  भवति नयनमयथा  ॥ ** 
युगानुरूपोपाय-चिन्तने,  भवति सर्वदा हृदय-मन्थनम् ।
न केवलं कैकेयी-वचनाज्जगाम रामो वृथा वा वनम् ।
समय-रक्षणं शिलाऽपि कुरुते,  रामायणे यथा ॥ (विपत्रिता)   

    नदीमातृकायाः भारतभूम्याः महनीयता-वर्णनायां कवि-रमाकान्त-शुक्लस्य देशात्मबोधकं गीतं भाति मे भारतम्’ इत्यस्य प्रस्तूयते कियदंशः । पारम्परिक-स्रग्विणी-छन्दसा रचितेषु पद्येषु कवेः कथनमित्थम् :   
जाह्नवी-चन्द्रभागा-जलैः पावितंभानुजा-नर्मदा-वीचिभि-र्लालितम् 
तुङ्गभद्रा-विपाशादिभि-र्भावितंभूतले भाति मेऽनारतं भारतम् ॥  
यत्र मन्दाकिनी पाप-संहारिणीयत्र गोदावरी चारु-सञ्चारिणी 
देववाणी  यत्रास्ति मोदाकुलाभूतले भाति तन्मामकं भारतम्  (भाति मे भारतम्)  

    कवि-हरिदत्त-शर्मणः उत्कलिका’ इति गीति-सङ्कलनायाः ईदृशो भवेयम्’ गीतितः कतिपयं पद्यं प्रस्तूयते । बाधा-विघ्नाभ्यन्तरेऽपि मानवस्य सुख-शान्तिमय-जीवनयापनं कामयमानः कविः मार्मिकं निगदति एवंरूपेण :
इच्छामि जीवनं तत्यस्मिन् सुखं वसेयम् 
वाञ्छामि सुस्थलं तत्स्वैरं यतः श्वसेयम् ॥  
ईर्ष्यानले  दाहःहृदि मे सुधाप्रवाहः
निष्कारणं विरोधे  निजवैरिणं शमेयम् 
विपदां भवन्तु वाताःबहुदुःख-शोकघाताः
कुसुमास्तरण इवाहं  कण्टक-पथे चलेयम् 
           (ईदृशो भवेयम्कल्पवल्लीपृ.४५१-४५२नखदर्पणःपृ.२२-२३ 

 कवि-भास्कराचार्य-त्रिपाठिनः ‘वसन्त-माधुरी-कवितायाः कियदंशः परिवेष्यते । कुसुमानां  मधुरिमाप्राकृतिक- विभावानां वर्णाली चेत्यादि-प्रसङ्गे कवेर्लेखनी सुन्दरं चित्रयति एवंप्रकारकम्   
पुष्प-कोरकेषु नीलिमा विलोक्यते,  कीदृशी वसन्त-माधुरी ।  
सरांसि वापि-पल्वलानि,  नक्र-बाष्प-सङ्कुलानि,  
पङ्क-सङ्करेण सावनी विधीयते,  कीदृशी वसन्त-माधुरी 
तुषार-झञ्झया चिरस्य,  चेष्टितं तथा विहस्य 
वर्ण-भिन्नता तृणे तृणे विराजते,  कीदृशी वसन्त-माधुरी ’  
(वसन्त-माधुरीकल्पवल्लीपृ.३५७)   

    मानव-जीवनस्य सांसारिकमनुभूतिराशिं वर्णयतो हरेकृष्ण-मेहेरस्य स्वोद्भावित-मौलिक-मात्राच्छन्दोबद्धात् मातृगीतिकाञ्जलिः’ इति गीतिकाव्यात् कियदंशः प्रस्तूयते । नैसर्गिक-सौन्दर्य-सम्पन्नस्य भारतवर्षस्य स्वाधीनतां  राष्ट्रचेतनां च विचार्य कवेरभिव्यक्तिरित्थम्   
अम्बुधि-विधौत-सुमधुर-चरण-विलासा,  
गङ्गा-सलिले  सलील-सुललित-हासा   
कुसुमारामे  रसभर-सुरभि-समीरा,  
तरुवर-पुञ्जे  रञ्जित-मञ्जु-शरीरा ।   
विहङ्ग-ताने         मङ्गल-गाने  
श्यामल-शस्या विजयते,
भारतमाता परम-नमस्या विजयते    
स्वतन्त्रताया रणवीराणां  सफल-तपस्या विजयते ॥
      (देश-गीतिकामातृगीतिकाञ्जलिःपृ.११३)   

    देवर्षि-कलानाथ-शास्त्रिणः नवयुग-शिशोः स्वागतम्’ इति कवितायाः कतिपय-पद्यानि प्रस्तूयन्ते । नवसहस्राब्द्याः प्रारम्भे लब्धजनिं मानव-शिशुं प्रति सम्बोधनात्मिकायामस्यां गीत्यां कवेरभिव्यक्तिः समुत्साहप्रदा । आधुनिक-ज्ञान-विज्ञानानां सदुपयोगं कृत्वा स शिशुः संसारे शान्ति-समृद्धिं समानेष्यतिप्राच्य-सदाचार-प्रतिष्ठां करिष्यति इति कवे-र्मनसि आशा वर्त्तते । तस्य मात्राच्छन्दोबद्ध-पद्यरूपायां वर्णनायाम् :   
वर्षसहस्राणां विज्ञानं चरतु तवाद्य नु दास्यम्
प्राचां सच्चरितान्यनुहर रे यच्छ्रेयस्तदुपास्यम् ।
प्राक्तन-बीजै-र्नवपल्लविनीं फलिनीमृद्धिं जित्वा
निखिल-धरणितल-लभ्य-ज्ञाननिधेः सुफलानि च चित्वा ॥
आरोक्ष्यसि तुङ्गं प्रासादं यं स्रष्टुं वाञ्छामः ।
यस्याधार-भित्ति-निर्माणायाद्य वयं श्राम्यामः ॥
    (नवयुगशिशोः स्वागतम्कल्पवल्लीपृ.२८१

    कवि-दिगम्बर-महापात्रेण उत्कलीय-लोकनृत्ये प्रयुक्तैः कतिपय-च्छन्दोभिः व्यङ्ग्य-कवितानां प्रणयनं कृतम् । तस्य  व्यस्तरागम्-कविता-सङ्ग्रहात् प्रस्तुतमस्ति एकमुदाहरणम्  । पक्वकेश-वरेण साकं कुमारी-कन्यायाः परिणय-प्रसङ्गे गीतिमये पद्ये कवेः कथनमीदृशम् 
रोदिति रहो दुहिता सदने जननी सदा चिन्तिता / एष्यति कदा जामाता 
वारि नास्ति वारिवाहे / जामाता भवति पलित-केशः
कुमारी क्रन्दति गृहे  (व्यस्तरागम्पृ.४४श्रद्धा,अङ्कः ३-पृ.९१)  

लहरी-काव्यम् 
    लहरी-काव्यं खण्डकाव्यस्यान्तर्गतं भवतिराग-काव्यं च । गायन-योग्यत्वात् गीतिकाव्येऽपि द्वयोरेतयोरन्तर्भवनं समीचीनम् । आधुनिक-काव्यशास्त्री आचार्यः अभिराज-राजेन्द्र-मिश्रः मतं पोषयति यत् लहरी-काव्यस्य प्रतिपाद्यं लहरीवद् भवति । समुद्रे यथा लहर्यः परस्परं संलग्नाः विद्यन्तेभङ्गीराशिं जनयन्त्यः अभिन्नाः प्रतीयन्तेतद्वत्  लहरी-काव्ये भक्ति-शृङ्गारादि-विषयाः अन्य-प्रवृत्तयश्च परस्पर-भिन्नत्वेऽपि मूलभावं परिपोषयन्ति (द्रष्टव्यम् अभिराज-यशोभूषणम्पृ२२६ पारम्परिक-काव्येषु आदिशङ्कराचार्यस्य सौन्दर्य-लहरीपण्डितराज-जगन्नाथस्य गङ्गालहरीकरुणा-लहरी लक्ष्मी-लहरी चेत्याद्याः सुपरिचिताः । आधुनिक-संस्कृते पण्डिता-क्षमाराव-कृतं मीरा-लहरी-काव्यमुल्लेखनीयमस्तियत्र कृष्णोपासिकायाः मीरायाः जीवनगाथा वर्णिता ।   

   लहरी-शब्देन सम्पृक्तं काव्यं समुद्र-लहर्या अथवा नौकया सार्धं सर्वदैव सम्बद्धं स्यादिति विषयो न भवति । प्रस्तुत- प्रसङ्गे कवि-राधावल्लभत्रिपाठिनः लहरीदशकम्’ इति काव्यात् पङ्क्तिरेका उदाह्रियते । विमानयात्रावेलायां नभसः उपरिभागात् निम्नस्थितां पृथिवीं विलोक्य कविना स्वानुभूतिः प्रकाशिता । मन्दाक्रान्ता-छन्दोबद्धं पद्यमेकमीदृशम् :  
गत्वा चोर्ध्वं वियति विपुलेऽसौ विमानो ललम्बे  
निःस्तब्धत्वं गत इव यथा विस्मृत-श्वास आसीत् ।  
नो संसर्पन् नियतगमनः पृष्ठतश्चाग्रतो वा    
विश्वामित्र-प्रतिहत-रयः संपतन् वा त्रिशङ्कुः  (धरित्रीदर्शन-लहरी)  

    विविध-साहित्येषु नदी-समुद्र-नौका-नाविकादि-सम्बद्धानि नैकानि गीतानि दृक्पथमवतरन्ति । आधुनिक-संस्कृतेऽपि तादृशानि गीतानि भवन्ति । यथाकवि-त्रिपाठिनः गीतधीवरम्’ इति काव्यात् पङ्क्तिरेका प्रस्तूयते :   
लहरीषु मया गीति-र्लिखिता, रचिता नूतन-शब्दतरी ।   
छन्दःसु मया जगती रचिताकलिता नूतन-भाव-झरी  (धीवर-गीतयः)      

अपरमेकं नौका-सम्बद्धमुदाहरणं तस्मादेव कवि-त्रिपाठिनः गीतिकाव्यात्  
नौकामिह सारं सारम्, गन्तास्मि कदाचित् पारम् 
उत्तीर्णः स्यामपि मन्ये, पारावारमपारम्  (गीत-धीवरम्)  

    कवि-हरिराम-आचार्यस्य मधुच्छन्दा-कविता-सङ्ग्रहात् कैवर्तक-गीतम्’ इत्यस्य कियदंशः प्रस्तूयते । जीवनं समुद्रस्य जल-धारा-रूपेण वर्णयता कविना नाविक-मुखे प्रकाशितम् :    
जीवनमस्माकं  रेसागर-जलधारा  
स्पन्दनमस्माकं  रेसागर-जलधारा  ॥   
वरुणालय-गमनं नो - हैया हो हैया,  
नौकानामयनं नो - हैया हो हैया
अशनं नो वसनं नोरात्रौ सुख-शयनं नो
धरतीयं धात्रीव सागर-जलधारा  
(कल्पवल्लीपृ.२६२-२६३ / दृक् २४-२५ अङ्कःपृ.१०२

संस्कृत-हाइकु-कविता 
    हाइकु-कविता-संरचनायां ---वर्णक्रमो भवति । कविः हर्षदेव-माधवः आधुनिक-संस्कृतसाहित्ये हाइकु-छन्दसः प्रथम-प्रवर्त्तकः स्वीक्रियते । त्रिपादयुक्तं  हाइकु-छन्दस्तेन बिल्वपत्र-रूपेण चित्रितम् । कवेर्माधवस्य ऋषेः क्षुब्धे चेतसि (हाइकु-तान्का-सिजो-कविता-सङ्ग्रहः)-काव्यात् हाइकु-कवितायाः नैसर्गिक-चित्रसम्पन्नं रम्यमुदाहरणमेकम् :  
उद्याने ज्योत्स्ना विगलितं सौन्दर्यं / पारिजातानाम्  (ऋषेः क्षुब्धे चेतसिपृ५५

    सामाजिक-समस्यामधिकृत्य हरेकृष्ण-मेहेरस्य हासितास्या वयस्या (हाइकु-सिजो-तान्का-सङ्कलनाइति काव्यात् हाइकु-कवितायाः उदाहरणमेकं प्रस्तूयते । वात्या-ग्रस्तानां कृते प्रदत्तानां सहायता-राशिद्रव्याणां धूर्त्तगण-कृतं लुण्ठन-विषयमुद्दिश्य कवेरुक्तिरेवम् 
आयाति वात्या गृध्राणां मधुमासःअर्था उड्डीनाः  (हाइकु-कविताःहासितास्या वयस्या)       

  प्रयागतीर्थे कुम्भस्नान-जनितं पुण्यलाभ-पापनाश-प्रसङ्गं समानीय रचिता कवि-बनमालि-बिश्वालस्य एका हाइकु-कविता एवंप्रकारा :   
ददाति पुण्यं त्रायते कृतपापं प्रयागे स्नानम्   (महाकुम्भलहरीपद्यबन्धा’ अङ्क--पृ.१००

 सम्प्रति अन्तर्जालयुगे सङ्गणक-यन्त्रमधिकृत्य एका हाइकु-कविता कवि-नारायण-दाशस्य लेखनीतः समुपस्थाप्यते :  
आन्तर्जालके प्रीति-मेल-पत्रकम् ईहे मूषकः  (पद्यबन्धा’ अङ्क--पृ.१०३

संस्कृत- तान्का-कविता 
     तान्का-कविता-संरचनायां भवति ५-----वर्णक्रमः । इयं तान्का हाइकु-छन्दसः सम्प्रसारणमेकमिति वक्तुं शक्यते । निसर्ग-सौन्दर्य-वर्णनायां कवि-हर्षदेव-माधवस्य तान्का-कवितायाः मञ्जुलमुदाहरणमेकम् : 
सर्षप-क्षेत्रम् पीतपुष्प-रञ्जितं भाति सुन्दरम् लग्नोत्सुक-कन्यायाः हरिद्रासिक्तं गात्रम् 
(ऋषेः क्षुब्धे चेतसिपृ६८
तस्यैव कवि-माधवस्य अपरैका दीप-प्रणय-विषयिणी तान्का प्रस्तूयते :  
भाति युवतिः दीपावली-दीपानां / द्युति-मण्डिता । प्रज्वलिते च नेत्रे प्रियतम-स्नेहेन ॥
(ऋषेः क्षुब्धे चेतसिपृ५८) 

    तान्का-कवितायाः उदाहरणमेकं हरेकृष्ण-मेहेरस्य हासितास्या वयस्या-काव्यात् । साम्प्रतिक-समाजे बाह्य- चाकचक्यं पुनराभ्यन्तर-शून्यतां च निरीक्ष्य  कवेरभिव्यक्तिरेवंविधा :  
कर्गज-पुष्पं मध्येमार्गं मञ्जुलं निर्गन्धं भाति । 
आधुनिकी सभ्यता उपभोग्य-दर्शना  (तान्का-कविताःहासितास्या वयस्या।  

  अपरमेकमुदाहरणं कवेर्मेहेरस्य लेखनीतः  आधुनिके यान्त्रिक-युगे अनिवार्य-वस्तुरूपा विद्यते चल-दूरभाषिका । तद्यन्त्र-प्रसङ्गमानीय एका तान्का-कविता प्रस्तूयते :  
जगन्मोहिनी वशीकरोति विश्वं प्रकामं काम्या भ्राम्य-दूरभाषिका स्वाधीन-भर्त्तृकेव ॥ 
(तान्का-कविताःहासितास्या वयस्या
  अत्राशयः एवं यत् स्वाधीनभर्त्तृका नायिका स्वमोहिनी-शक्त्या यथा स्वामिनं सदा स्ववशं नयतितथा चल-दूरभाषिका अर्थात् मोबाइल्-फोन् साम्प्रतं निज-सम्मोहिन्या विश्वं अर्थात् सर्वं ग्रहीतारं  वशीभूतं करोति । नायिका स्वामिनः प्रणयानुरागेण समभिलषिता भवतिइतो दूरभाषिकाऽपि ग्रहीतु-र्जनस्य नितान्तमीप्सिता ।

संस्कृतसिजो-कविता 
    सिजो-कविता-संरचनायां ८------वर्णक्रमो विद्यते । सिजो-कवितायाः प्रस्तूयते पङ्क्तिरेका कवि-हर्षदेव-माधवस्य काव्यात् । यातायात-सङ्कुले संसारे जीवनस्य क्षणिकमनित्यं दुःखं विचार्य मानवस्य कृते सान्त्वनां प्रदाय कविः कथयति :  
वृक्षेभ्यः कानि पर्णानि पतितानि शीर्णानि ? / नदीभ्यः कानि जलानि आगतानि गतानि ? / 
त्वमेव मूढ़ ! रोदिषि लघुकानि दुःखानि  (ऋषेः क्षुब्धे चेतसिपृ.७२। 

  सिजो-कवितायाः अन्यदुदाहरणं कवेर्माधवस्य । स्वस्य जागतिकीं स्थितिं कल्पयता कविना कथ्यते : 
इयं नौका किं नेष्यति मां गाढ़-जलपारम् ?/ विचिन्तयामि मनसा / इत्थं किं वारंवारम् ? / कदा पर्यन्तं स्थास्यामि / पश्यन् मां निराधारम् ?  (ऋषेः क्षुब्धे चेतसिपृ७४)  

   सिजो-कवितायाः एकमुदाहरणं हरेकृष्ण-मेहेरस्य काव्यतः । जगत्यां कुकर्मणां कुपरिणामः समयानुसारं नूनं भुज्यते । समाजे धूर्त्तानां लोकधन-शोषकाणां भ्रष्टाचारिणामवस्था शोचनीया भवत्येव । विषयेऽस्मिन्  कवेरभिव्यक्तिरियम्  :  चूषति दुर्नय-लिप्तः / वित्तं लोक-सञ्चितम् / विधृतः कारा-पतितः / उत्कण्ठितो मत्कुणः/ जाग्रतस्य रसास्वादी / पादेन व्यापादितः (सिजो-कविताः/ हासितास्या वयस्या) । 

 आधुनिकतायाः परम्परायाश्च समन्वय-विषयमधिकृत्य अपरैका सिजो-कविता कवि-मेहेरस्य लेखन्याः प्रस्तूयते : 
आधुनिकता-प्रसूनम् परम्परा-वल्लर्याः भित्तिवारि-संवर्धिता अभिनवा प्रसूतिः/ मौलिकता-सुरभिता युगरुचि-स्फुरिता  (सिजो-कविताःहासितास्या वयस्या 

संस्कृत -गजल्  (गलज्जलिका) :  
    उर्दू-गजल्-गीति-प्रभावात्  आधुनिक-संस्कृते गजल्-गीतिः स्वान्तमोहक-रूपेण लभ्यते । मात्रासंख्या-भेदेन गजल्-गीतिः बहुप्रकारा । नव्य-काव्यशास्त्रिणा आचार्य-अभिराज-राजेन्द्रमिश्रेण संस्कृत-गजल्-गीतिः गलज्जलिका-नाम्ना नामितास्ति । तस्य त्रिवेणीकवेः मत्तवारणी’ इति गजल्-काव्य-सङ्कलनायाः कियदंशः प्रस्तूयते । साधारण-मानवस्य परोपकारितादि-समुदात्त-भावनायाः सामाजिक-समुपादेयता-प्रसङ्गे कवेः षोड़श-मात्रिका गलज्जलिका प्रणिधेया :  
नाहमस्मि सूर्योदीपोऽहम् मनोराज्य-धरणीपोऽहम्    
सिन्धोरिव न  मे विस्तारः सर्वसुलभ-मृदुजल-कूपोऽहम्    
चन्दनवन-सुरतरुरपि नाहम् ,  घनच्छाय-जनपथ-नीपोऽहम्  
अलमिह मम निष्ठा परीक्षया,  तनुमपि दास्यामि दिलीपोऽहम्    (मत्तवारणी

     कवयित्र्याः दीक्षित-पुष्पायाः लोकोऽयम्’ इति गजल्-गीतेः कियदंशः उदाहरण-स्वरूपम् । सामाजिक-व्यापारे प्रेमिजनं प्रति उदासीनतासाधुजनं प्रति मूर्खस्य शत्रुताचरणं चेत्यादि-विषयाणां प्रसङ्गे तस्याः गीतोक्तिरेवंविधा :   
जने प्रेमप्लुते ताटस्थ्यमाबध्नाति लोकोऽयम् ।  
तटस्थे प्रीतिमाधातुं सयत्नो भाति लोकोऽयम् ॥   
अवैरे सज्जने निष्कारणे वैरायते मूढ़ः,  
जने दुर्दान्त-दौरात्म्त्ये कुलीनो भाति लोकोऽयम् ॥’ (लोकोऽयम्कल्पवल्लीपृ.३९५)      

     कवेः इच्छाराम-द्विवेदिनः धनुस्ते कीदृशम्’ इति प्रणय-परकायाः गजल्-गीतेः कतिपय-पङ्क्तयः समास्वादनीयाः । शर-सन्धानं विनापि प्रेमासक्तं हृदयं कीदृशं क्षताक्तं भवतितत् कवेरभिव्यक्तितो ज्ञायते   उदाहरण-स्वरूपम् :  
धनुस्ते कीदृशं कियदद्भुतं बन्धो !  कथं जाने ?   
विना नाराच-सन्धानं  व्रणं कुरुते  कथं जाने ? 
मया शास्त्रे श्रुतं  मन्दस्मितै-र्नन्दन्ति सत्पुरुषाः,  
मनो  दूयते ते  सुस्मितै-र्बन्धो !  कथं जाने  ? (धनुस्ते कीदृशम्कल्पवल्लीपृ.५७०)    

     कवि-बच्चूलाल-अवस्थिनः गजल्-गीतेः एकमुदाहरणं प्रस्तूयते । साम्प्रतिके समाजे मानवस्य वचने आचरणे च कीदृशी भिन्नता दृश्यतेकवि-कृतौ सा प्रतिफलिता इत्थम् :  
अर्जितानां समर्जनं भूयः । नार्जवं किन्तु कर्जनं भूयः   
अद्य केयं दशास्ति मेघानां , वर्षणं नैव गर्जनं भूयः ॥  
भस्मसाद् भावयन्ति का हानिः भर्जितस्यैव भर्जनं भूयः   
व्याकुलोऽर्थः  क्व याति  क्व चिन्ता शब्दजालस्य सर्जनं भूयः  (अभिराज-यशोभूषणम्पृ.२९३)   

     कवि-जगन्नाथ-पाठकस्य पिपासा-काव्याद्  एकस्याः गजल्-गीतेः कियदंशः परिवेष्यते । निःसङ्गतायाः अपरेषां च सम्बन्धानां विषये कविना वर्ण्यते 
सार्धं  हन्त कोऽपि गतः  सर्वतो मया   आसादितो  कोऽपि निजः  सर्वतो मया 
एकाकिनो जनस्य हि  दिवसा  यान्त्यमी एवं  यापितो दिवसः  सर्वतो मया   
आत्मीयतां गतेऽपि सकलेऽपि कोऽप्यहो नैव श्रुतो मदीय-जनः  सर्वतो मया   
(पिपासाअभिराज-यशोभूषणम्पृ.२९५)   

    कवि-जनार्दनप्रसाद-पाण्डेयस्य एका गजल्-गीतिः प्रस्तूयते । आधुनिके कलियुगे राजनीतिक-परिवेशे कृष्णगीतां धृत्वा मिथ्या-शपथकारिणां हरिनाम-विस्मरणकारिणां च कृते कविना सकटाक्षं निगदितम् :  
केवलं श्रोत्रविनोदं विचिन्त्य सत्कुरुषे ।
गीतिका तेऽस्मि शताब्द्या न पक्ष्मभिश्चिनुषे ॥
कृष्णगीताऽपि वृता हा ! त्वयाऽनृते शपथे ।
गोखुराङ्कस्थ-जलाब्धौ निपत्य न म्रियसे ॥
राजनीतेस्तु महापङ्किले विलास-रसे ।
प्राप्त-निर्वाण-सुखस्त्वं प्रभुं न चेतयसे ॥ (अभिराज-यशोभूषणम्पृ.२९६

मुक्तच्छान्दस-कविता :  
    मुक्तच्छान्दसं काव्यम् अथवा छन्दोमुक्ता कविता अन्य-प्रान्तीय-भाषासाहित्येषु यद्वत् समुपलभ्यतेआधुनिक- संस्कृतसाहित्येऽपि विपुलं दृष्टिपथमवतरति । लौकिक-संस्कृते आधुनिक-संस्कृते च पारम्परिक-दृष्ट्या प्रायः पिङ्गल-श्रुतबोध-छन्दोमञ्जरी-वृत्तरत्नाकर-प्रभृतिषु छन्दःशास्त्रेषु प्रतिपादितै-र्विविधैरार्यादि-मात्राच्छन्दोभिः अनुष्टुप्-वंशस्थ-स्रग्विणी-शिखरिणी-प्रभृति-वर्णच्छन्दोभिश्च प्रणीताः श्लोक-रूपाः कविताः विलोक्यन्ते । आधुनिक-संस्कृत-साहित्यस्य अन्यदेकं विशेषत्वं भवति मुक्तच्छन्दसः प्रयोगः । विषयेऽस्मिन् सामान्य-चर्चा समीचीना ।    

   विदेशीय-साहित्यानां भारतीय-प्रान्तीय-साहित्यानां च प्रभावेण आधुनिक-संस्कृत-साहित्ये मुक्त-च्छन्दसाऽपि  रचिताः कविताः समवलोक्यन्ते । नाट्यशास्त्रकारेण भरतमुनिना साधु वर्णितम् : 
छन्दोहीनो न शब्दोऽस्ति न च्छन्दः शब्दवर्जितम् ।  
तस्मात्तूभय-संयुक्ते नाट्यस्योद्योतके स्मृते ॥’ (नाट्यशास्त्र१४/४०।  
  नाट्यशास्त्रस्य उक्तिमेतामवलम्ब्य आधुनिक-काव्यशास्त्री अभिराज-राजेन्द्र-मिश्रः मतं पोषयति यत् पद्येतरे गद्येऽपि छन्दोमयता विद्यते । उभयोः गद्य-पद्ययोः रसवत्ता-भरितं भवति छन्दोमुक्तं काव्यम् । गद्य-पद्ययो-र्द्वयो-र्जीवातुं धारयति छन्दोमुक्तं वाङ्मयम्यत् पद्यात्मक-लय-द्वारा गद्य-विधायां लिख्यते । छन्दोमुक्तं काव्यं वस्तुतो लयवाहि गद्यमेव । आङ्ग्ल-भाषायामेतद् रिद्मिक् प्रोज्‍’ इति कथ्यते । (द्रष्टव्यम्अभिराज-यशोभूषणम्पृ३०२-३०३ 

    मुक्तच्छन्दोबद्धा कविता प्रायः उपधामिलन-रहिता भवति । अस्याः प्रत्येक-पङ्क्तिः असमान-वर्णसंख्याका । व्यक्तिरुच्यनुसारं पुनः व्यवहित-रूपेण अव्यवहित-रूपेण च मित्राक्षरयुक्तः अर्थात् उपधामिलन-सहितोऽपि भवति मुक्तच्छन्दोव्यवहारः । उदाहृत-पङ्क्तिषु एवंभूत-प्रयोग-स्पष्टता समनुभूयते । कवेः अभिराज-राजेन्द्र-मिश्रस्य ‘चर्चरी-कविता-सङ्ग्रहात्  प्रस्तुतमस्ति एकमुदाहरणम् :   
अभिलषामि यद् राज्ञा पृष्टोऽहमपि/  जाबालि-श्रावितांमदात्मकथांसमुपवर्णयेयं 
शापमुक्तश्च भवेयम् । /म्रियेत शूद्रकः जीवेच्चन्द्रापीड़ः विलसेत् कादम्बरी म्रियेत शुक-शावको 
जीवेद् वैशम्पायनो विलसेन् महाश्वेता अभिलषामि  (अभिलाषः, कल्पवल्लीपृ.३७१-३७२)   

    कवेः रेवाप्रसाद-द्विवेदिनः अहं स्वतन्त्रः’ इति कवितायाः कियदंशः । साम्प्रतिक-समाजे स्वाधीनता-नाम्ना प्रवर्त्तित-स्वेच्छाचार-विषये कविः सव्यङ्ग्यं कथयति :  
अहं स्वतन्त्रःपरं निन्दितुं / यदि वात्मानं स्तोतुम् / तर्पयितुं मम मानस-गृध्रं 
पोषयितुं मम कायम् / धातुमात्र-संकायम्    
अहं स्वतन्त्रः / परस्य कण्ठे करपत्रं चालयितुं 
अर्थः सिध्यतु   वा मदीयः परस्य मार्गं रोद्धुं जन-नेतृत्वं बोद्धुं  
बहुमत-लब्ध्यै यथाकथञ्चित्कूटगवीमपि दोग्धुम्  
(अहं स्वतन्त्रःकल्पवल्लीपृ.२४८)     

    कवि-कमलेशदत्त-त्रिपाठिनः योरोपा-कवितायाः प्रस्तूयन्ते कतिपय-पङ्क्तयः । पाश्चात्य-देशे सुख्यातायाः वीनस-देव्याः  प्रसङ्गमाश्रित्य कविः जिज्ञासां प्रकाशयति  
   योरोपे ! काऽसि त्वम् ?/ **  रोमकवीराणां प्रवेशैः / परिकम्पितानां सौधानां शिखरेषु उपर्युपरि सञ्चरन्ती तन्वी दुग्ध-धवलाङ्गानि वहन्ती माधुर्य-रससार-समुद्र-तरङ्गभङ्गीव वीनसाख्या देवी सविस्मयं विलोकिता अपि नाम सैवाऽसि त्वम् ?’ (योरोपानखदर्पणःपृ.२८)

   रात्रि-वेलायाः विविध-स्वरूपवर्णने कवि-केशवचन्द्र-दाशस्य ईशा-कवितासङ्कलनात् कियदंशः एवम्  :    रजनी विजनीभवति एकाकिनी गृहिणीव हेमन्तस्य शिशिर-बिन्दवे /तारका करकायतेव्यथा कथामारभते अवितथं प्रथयितुम् / यथाकथञ्चित् / समाप्ति-सोपाने / रेलस्थाने जन-सम्मर्दस्य उत्थाने पतने ॥’ (रजनी विजनीभवति
 स्वीय-जागतिक-स्थिति-विषये कवि-दाशस्य ईशा’-कवितासङ्ग्रहाद् अन्यदेकमुदाहरणम् 
नाहं निक्षिप्त-कन्दुकःप्रत्यागमिष्यामि भूतलं संस्पृश्य / परमेको मिमिलिषुः आषाढ़स्य़ बिन्दुः  (ईशा)

     कवि-हर्षदेव-माधवस्य कृषीबलः’ कवितायाः कियदंशः । कृषकस्य सामाजिक-दुर्दशां तस्य महनीयतां च निरीक्ष्य कविः हृदयस्पर्शि-रूपेण वर्णयति : 
 कृषीबलः स्वभाग्यं वपति दुर्भाग्यं प्ररोहति ।/ * तस्य नत-कन्धरयोरस्ति / देशस्य श्वस्तन-सूर्योदयः / यदा कृषीबलः पञ्चत्वं गमिष्यति तदा भविष्यति सः जलद-भारनतं व्योम सूर्यस्य मसृणातपः तिलपुष्प-सुरभिहरः पवनः इक्षुदण्डानां रसः अपि   प्रथम-वर्षास्पर्श-पुलकिता क्षेत्र-मृत्तिका  (निष्क्रान्ताः सर्वेपृ.१३१-१३२)  

    कवि-माधवस्य ‘प्रकाशोपनिषद्’ इति दार्शनिक-काव्यात् प्रकाशस्य विविधवर्णात्मक-चित्रण-विषये प्रस्तूयते एकमुदाहरणमेवम्  : 
  ‘अरुणाभा-स्नाताप्रकाश-करुणा / स्नापयति माम् । / पाटलोज्ज्वला द्युतिःमण्डयति मे मृत्तिकाम् ।तड़ित्-पिशङ्गा तेजोरतिः / रञ्जयति मे तमः । / आकाशगङ्गा-धवलार्चिमाला / गमयति गगनं मे प्राणान् ॥ (प्रकाशोपनिषद्)       

     हरेकृष्ण-मेहेरस्य जीवनालेख्यम्-काव्यस्य अन्धानुसन्धानम्-कवितायाः एकमुदाहरणम् । आधुनिके कलुषिते समाजे नारी-दुर्दशा-वर्णनेन सार्धं कविना रामायण-महाभारत-गतानां खल-चरित्राणामवतारणा कृतास्ति । साम्प्रतिक-युगेऽपि नारीमर्यादाहानि-विषये कवेरभिव्यक्तिरीदृशी : 
  अद्यापि भ्रमन्ति रावणाः बहुवैदेही-हरण-प्रवणाः ।कुर्वन्ति द्रुतमुपद्रवं जयद्रथाः पर-दारापहरणार्थं समारूढ़-रथाः ॥बाष्पपूर्णाश्चतुश्पद्यः अद्यापि खिद्यन्ते समुपद्रुता द्रौपद्यः । शरव्या दुःशासनानाम् / केशकर्षण-धर्षण-लालसानाम् । भीष्मास्तु तूष्णीकृत-वर्ष्माणो ह्यनुष्णाः अपेक्षन्ते कदा रक्षिष्यन्ति श्रीकृष्णाः ’ (अन्धानुसन्धानम्संस्कृतमञ्जरीअप्रैल् २००७

    अन्यदेकमुदाहरणम्  उपधामिलन-सहितायाः मुक्तच्छान्दस-कवितायाः हरेकृष्ण-मेहेरस्य ‘मौनव्यञ्जना’-काव्यतः । मौनस्य अभिव्यक्ति-सामर्थ्य-विषये कवेः कथनमीदृशम् 
नीरवताया अपि भाषाऽस्ति, कोऽपि शिक्षयति  वा शास्ति ब्रवीति नीरवताकदा हृदयस्य गोपनीय-कथाम्अन्तःस्थलस्य सुप्त-व्यथाम् / यया भाव्यते सहृदयस्य भाववत्ता ’  (मौनव्यञ्जना/  लोकभाषा-सुश्रीः,  फेब्रुआरी-मार्च २००६ 

   कवि-बनमालि-बिश्वालस्य प्रियतमा-कवितासङ्कलनायाः कियदंशः प्रस्तूयते । फाल्गुन-मासे सायंकालस्य  कवरी-कुसुम-सौरभस्य चानुभवेन मिलन-समयागमनं सूच्यते इति कवेः कथनमेवंप्रकारकम् :     
 फाल्गुनस्य सन्ध्या यदा / नमेत क्वचिद् दूरे दिग्वलये / गन्धं घ्रात्वा कवरीपुष्पस्य 
प्रियतमे ! / ज्ञातुं प्रभवामि उपगता मिलनस्य वेला प्रस्फुरणं मदीये दोलायिता च 
मे प्रीतिदोला ॥’ (प्रियतमा

   समयक्रमेण मानव-जीवने कैशोर-तारुण्य-प्रोढ़त्वादि-विषये कवि-बिश्वालस्य ‘प्रौढ़:’ -कवितायाः कतिपय-पङ्क्तयः इत्थम् :  
  ‘विस्मृत्य  विस्मृत्य कैशोरं निवर्त्तते ब्रह्मचर्यं धीरंजीवन-कपाटे कुत्र / 
शृणोम्यहं यौवनस्य मृदु-कराघातम् । मन्मनो-मन्दिरेकस्य प्राप्य करस्पर्शं / 
देहो मम अभवदवशः । /जनैरुद्घोषितम् अयमद्य सञ्जातोऽस्ति प्रौढ़ः ’ (प्रौढ़ः)  

    कवि-रवीन्द्रकुमार-पण्डा-रचितात् ‘बलाका’-कवितासङ्ग्रहात् छन्दोमुक्ताः कतिपय-पङ्क्तयः निजास्तित्व-स्वरूप-वर्णना-प्रसङ्गे एवम्  :  
   ‘नाहमस्मि नेता सर्वनियन्ता । नाहमस्मि द्विजिह्वः / न च मे क्षमता । अहमस्मि कविः / रसानन्द-दाता । नाहं सर्प इव भयङ्करः । न सम्पत्तिर्ममन च काचित् सत्ता । अहमस्मि प्रवक्ता ॥’ (बलाका
  अनेक-रूपक-माध्यमेन मनस्तत्त्व-विषये पुनः पण्डा-कवेः वर्णनमित्थम् : मनः निदाघस्य मेघः।मनः चैत्रस्य पवनः ।मनः श्रावणस्य वारिधारा ।मनः वसन्तस्योपवनम् ।मनः हेमन्तस्य हिमालयः ।मनः शीतस्य रजनी ॥’ (नीरवझरःनखदर्पणःपृ.९५)

गद्यविभागे  उपन्यासःकथा :   
   भारतीय-भाषासाहित्येषु गद्यविभागे उपन्यासस्य स्वतन्त्रमेकं महत्त्वपूर्णं स्थानं विद्यते । संस्कृतस्य पारम्परिके  गद्यकाव्यस्य कथा-विभाजने कवि-बाणभट्ट-कृता कादम्बरी’ सुविदिता । परन्तु प्रचलित-संस्कृत-साहित्यस्य इतिहासे  उपन्यास-विभागस्य अनस्तित्वात् सा उपन्यास-रूपेण न परिचितास्ति । आधुनिक-दृष्ट्या विचारानुसारं वस्तुतः कादम्बरी एको  बृहदुपन्यासो वर्त्तते । आधुनिक-संस्कृते कथाख्यायिकयोः मिश्रित-रूपम् उपन्यास-नाम्ना चर्चितम् ।

    प्रसङ्गतः कवि-कथाकारस्य केशवचन्द्र-दाशस्य अञ्जलिः-उपन्यासात् सामाजिक-समस्यापरकं जीवन-मूल्यबोध-द्योतकं विषयमुद्दिश्य कतिपय-पङ्क्तयः एवम् :  
  दहनं साधारणीकृत्य रात्रिः तया व्यतीता  विषयो विमृष्टः  विवादो विचारितः । समाधानमन्विष्टम्  आत्मा अवबुद्धः  उपायः चिन्तितः  परं कालाधारे सर्वमद्य शिथिलम्  (अञ्जलिःपृ.४६  
दार्शनिकता-प्रसङ्गे औपन्यासिक-दाशस्य ऋतम्-उपन्यासात् कियदंशः । मधुरबिम्ब-योजनया कविः वर्णयति :  
नदी झरीयतिझरी  नदी भवति  स्रोतस्तु यथातथा  उपचये श्रीमती सहस्रधारा  अपचयेऽपि तथैव श्रीधारा  वहने क्षालन-प्लावनयोः अद्वैत-प्रतीतिः  नदीयं केवलं क्षालयतिपावयति । इयं हि चेतना-नदी  (ऋतम्)

    कथाकार-प्रभुनाथ-द्विवेदिनः रुचिवैचित्र्यम्-कथायाः उदाहरणमेकम्  विविधोपमानानां चित्रणेन सार्धं नारी-रूप-कल्पनायां  सुन्दराभिव्यक्तिरित्थम् :  
  त्वया तु काचिदपूर्वा सकल-गुणालङ्कार-भूषिता पूर्णचन्द्र-यामिनीवपञ्चमहाभूत-सत्त्वांश-समष्टिरिवनिरवद्य-सौन्दर्य-सृष्टिरिवसकल-सुधावृष्टिरिवदुग्धफल-मिष्टिरिवकनकावदात-यष्टिरिवसफलीभूत-मदनोत्सवेष्टिरिव काम्यते कामिनी प्रसाद-सदना भामिनी ’ (रुचिवैचित्र्यम्अन्तर्ध्वनिः)    

     कथाकार-बनमालि-बिश्वालस्य नीरव-स्वनः’ इति लघुकथा-सङ्कलनात् सामाजिक-सन्दर्भे पितृप्राणः-कथायाः   कियदंशः एवम् :  
  ‘नासा तु रक्त-रञ्जिता  चक्षुषः चतुःपार्श्वे सुदीर्घः कज्जल-प्रलेपः  चित्रिता टोपिका  तुलया भृतं नासा-रन्ध्रम्  ईदृशो विचित्र-वेशयुक्तो मातृप्राणः यदा मञ्चोपरि आयातितदा बालबृद्ध-वनिताः सर्वे दर्शकाः अट्-हास्यैः तस्य स्वागतं विदधति  (नीरवस्वनःपृ.१७  

     प्रस्तुतेऽत्र सीमित-लेखे विभिन्न-विधानां समस्त-ग्रन्थानामुदाहरणानां च परिवेषणं न सम्भवति । अत एव विविधा रचनावली सुविधानुसारमन्यत्र सुधीभिरन्वेषणीयाद्रष्टव्या समास्वादनीया च ।   
आधुनिकतायां मूल्यबोधःसौन्दर्यम् : 
     प्रत्येक-भाषायां निजस्वं व्याकरणंगठन-पद्धतिःलेखन-चातुरीसाहित्यिक-तत्त्वानिअन्य-सहायक-विभावाश्च  स्वतन्त्र-रूपेण भवन्ति । एतत् सर्वं कदापि नोपेक्षणीयम् । आधुनिकतायाः प्रभावात् संस्कृते कतिपय-विदेशीय-च्छन्दांसि अन्तर्भुक्तानि सन्ति । एतत्कारणात् संस्कृतस्य मूल-स्वरूपे स्वतन्त्रतायां मर्यादायां च नास्ति कस्याश्चिदपि  हानेरवकाशः । एतत् सर्वं सहायक-रूपेण समकालिकीं सामाजिकीं साहित्यिकीं सांस्कृतिकीं च रुचिं समवलम्ब्य प्रवर्त्तितम् । आधुनिकतायाः प्रसङ्गे कविकुलगुरोः कालिदासस्य उक्तिरियं स्मरणीया :  
पुराणमित्येव  साधु सर्वं 
 चापि काव्यं नवमित्यवद्यम् 
सन्तः परीक्ष्यान्यतरद् भजन्ते  
मूढ़ः पर-प्रत्यय-नेय-बुद्धिः  (मालविकाग्निमित्रम्प्रस्तावना/)    
कवि-कालिदासस्य आशयः एवं यत् पुरातनत्वात् सर्वं पुरातनम् उत्तममेव भवतीति विषयो नास्ति ।  नव्यत्वात् सर्वं नव्यं काव्यं वस्तु वा हेयं सदोषं वा भवतीति विषयोऽपि नास्ति । विवेकी उत्तमाधमयोः सम्यग् अनुशीलनं कृत्वा उत्तममेव गृह्णाति  परन्तु मूढ़ः स्वविचार-सामर्थ्याभावाद् अन्य-द्वारा स्वीयां बुद्धिं परिचालयति ।

     प्रसङ्गतः कवि-कृष्णानन्दस्य सहृदयानन्दम्’-महाकाव्यस्य पद्यमेकमपि समुल्लेखनीयम् :   
प्रत्नस्य काव्यस्य  नूतनस्य / तुल्यः स्वभावः प्रतिभासते मे 
मृजाभिरेते निपुणैः कृताभिः / समश्नुवाते हि गुणान्तराणि ’ (सहृदयानन्दम्/
कवि-कृष्णानन्दस्य वक्तव्यमिदं यत् काव्यं पुरातनं भवतु अथवा नूतनम्उभयोः स्वभावः समान-रूपेण एव प्रतीयते ।  एतत् काव्यद्वयं  प्रवीणै-र्विद्वज्जनैः सम्मार्जितं संस्कारितं भूत्वा समुत्कर्षं लभते ।    

  आधुनिक-साहित्यस्य नैके लेखकाः पुरातनं पारम्परिकं वा विषयवस्तु समाश्रित्य तस्मिन् मूल्यबोध-सम्पन्नं नव्यं  समकालिकं रूपं संयोज्य काव्यादिकं रचयन्तिसाम्प्रतिके समाजे लोकप्रियाश्च वर्त्तन्ते । युगेन साकं समतालं विधाय सकारात्मकेन नूतन-रूपमाध्यमेन प्रवृत्तं साहित्यं समाजस्य हितकरं  गौरवसम्पन्नं च भवति । वास्तवता-कल्पनाविलासयोः समन्वयेन साहित्यस्य कलेवरं परिपुष्टं जायते । वास्तवतावत् कल्पनाविलासेऽपि जीवनानुभूतयो गर्भिताः भवन्ति । जीवनेन सह साहित्यस्य, साहित्येन सह समाजस्य, समाजेन सह देशस्य, देशेन सह विश्वस्य परस्परं भाव-सम्बन्धश्चिरन्तनो विद्यते । अतः साहित्यं सर्जनात्मकं संरचनात्मकं चोपादानं समादाय समाजस्य नूनं कल्याणकारकं स्यात् । साहित्ये नकारात्मकं चिन्तनं कुप्रभावं पातयति समाजोपरि । संस्कृते सदैव विश्वजनीनं मङ्गलमयं सौन्दर्यमयं शान्तिमयमानन्दमयं च तत्त्वजातं निहितमस्ति ।  

    आधुनिकता-विषये प्रसिद्ध-संस्कृत-कवे: आचार्य-रामकरण-शर्मणः मतमित्थम् : 
“आधुनिकतायाः अर्थः ‘अप्राच्यता’ न भवति । पूर्वं पश्चिमम्, उत्तरं दक्षिणम्, स्वर्गः पातालम् – यस्मादपि सुरुचिपूर्णं शाश्वतं सौन्दर्य-तत्त्वं यत् सम्प्राप्यते, सहृदयानां कृते शब्दचित्र-माध्यमेन तस्य विसर्जन-करणमेव उत्तमं कविकर्म भवति । निरर्थको वर्ग-सङ्घर्षः, हिंसा, यौनोच्छृङ्खलता चेत्यादीनां पोषकं यथार्थमपि सुन्दरं न भवति । ईदृशात् मिथ्या-यथार्थवादात् दूरे स्थातव्यम् । अभिधात्मकः आदर्शवादोऽपि सम्भवतः काव्य-कोट्यां नायाति ।”
(दृक्, अङ्क-१, १९९९, पृ.१०३-१०४) 

     आधुनिकं भवतु वा पुरातनम्कस्य कृते कीदृशी कविता प्रियाअथवा कीदृशं काव्यंनाटकं गद्यं वा प्रियं प्रतीयतेविषयोऽयं वैयक्तिक-रुचेरुपरि समाश्रितो भवति  वैयक्तिक-रुच्यनुसारं सौन्दर्यबोध-प्रसङ्गोऽपि समायाति । नैसर्गिक-विभावेषुसर्वेषु कार्य-गुणाचरणादिषु च सौन्दर्यं समनुभूयते । प्रसङ्गानुसारं सौन्दर्यानुभूति-विषये पद्यान्येतानि स्मरणपथं समायान्ति :  
सत्यं शिवं सुन्दरमत्र लोके  / प्रसिद्धमेतत् त्रितयं विभाति 
जानाति नित्यं  खलु तत्त्वदर्शी  /  नाज्ञाय किञ्चित्  स्वदते मनोज्ञम्  
मन्नेत्रयो-र्यत् प्रतिभाति सुन्दरं  / त्वन्नेत्रयोस्तन्   भवेत् तथाविधम्  
यदन्य-नेत्रे  रुचिरं प्रपश्यतस्  /  तथैव नैतन्  मम ते  नेत्रयोः 
परन्तु किञ्चिद्  भुवि वस्तु विद्यते  / विचित्रमेवं  रचितं विधात्रा 
यद् वै जनानां  जगतां समेषां /  नेत्राणि पश्यन्ति सदैव सुन्दरम् ’   
 (सौन्दर्य-सन्दर्शनम्श्रद्धा,अङ्क -,  पृ.१०४)

तात्पर्यमेतद् भवति यत् काव्यं भवतु, अपरं वस्तु वा भवतु, तत् सर्वं द्रष्टुः भोक्तु-र्वा स्वस्व-दृष्टि-भङ्ग्या रुचिकरम् अरुचिकरं वा, सुन्दरम् असुन्दरं वा समनुभूयते । संसारे सत्य-शिव-सुन्दर-संज्ञकं तत्व-त्रयं तत्त्वदर्शी एव हृदयङ्गमं कुरुते  । अज्ञजनाय नान्दनिकं तत्त्वं न रोचते । अहं त्वं सः चेति जनत्रयस्य प्रसङ्गोऽत्र समायाति । मम नयनयोः यत् सुन्दरं भाति, तव नयनयोः तत् तथैव सुन्दरं भवेत्, ईदृशो विषयो न भवति । अन्यजनस्य (तृतीयस्य) लोचनयो-र्यत् सुन्दरमनुभूयते, तत् मम लोचनयोः, तव लोचनयोश्च सुन्दरमेव भवेत्, एतादृशो विषयोऽपि नास्ति । परन्तु विधातुः सर्जनायां किञ्चिदपि एतादृशं वस्तु विद्यते, यत् सर्वजनानां नयनेषु (सर्वेन्द्रियेष्वपि) सुन्दरं प्रतीयते ।   

 प्रत्येकस्य रचनाकारस्य प्रतिभायां मौलिकता स्वतन्त्रता वा वर्त्तते । स्वेच्छाचारेण यत्किञ्चिदपि लिखित्वा कोऽपि लेखको भवितुं नार्हति । लेखन्याः यदि दुरुपयोगो भवतितर्हि समाजोपरि शिवेतरस्य अमङ्गलस्य वा आशङ्का आपतति ।  कवित्वं राजते एकं दुर्लभं कलात्मकं तत्त्वम्यत्र भवति सत्य-शिव-सुन्दराणां समुपासना  कवि-लेखकानां रचनासु  संसारोपकारार्थं  कल्याण-कामनात्मकाः आवश्यकाः विषयाः गर्भिताः भवेयुः । कविः क्रान्तदर्शी इति कथ्यते  मानव-समाजाय सुसंस्काराणां मङ्गलमयानां तत्त्वानां सन्देश-प्रदानं प्रत्येक-साहित्यकारस्य कर्त्तव्यम्  आधुनिके  युगेऽपि संस्कृत-वाङ्मये अनेके बहुप्रतिभावन्तः लेखकाः सन्ति । तेषां कृतिषु च  सत्य-निष्ठतायाः,  कल्याणकारितायाः  नान्दनिकतायाश्च सम्यगवतारणा प्रतिभाति ।  आधुनिक-रचनापि स्वीय-काव्यगुणानुसारं कालजयिनी भवितुमर्हति ।  

उपसंहारः   
   आधुनिक-संस्कृत-वाङ्मयस्य सम्भारो विशालः प्राचुर्यपूर्णो भ्राजते । उपर्युक्तं विवेचनं केवलं दिग्दर्शन-मात्रम् । अनेन स्पष्टं हृदयङ्गमं कर्त्तुं शक्यते यत् संस्कृतस्य सारस्वत-प्रवाहः साम्प्रतिके विज्ञान-युगेऽपि निरन्तरं गतिशीलतां सक्रियतां च भजते । संस्कृते पूर्ववत् तदेव व्याकरणम्तद् वाक्य-निर्माणम्स अलङ्कारःस रसःस भावःतत् सौन्दर्यं चेत्यादि सर्वं विद्यते । भाषाणां तुलनात्मक-विवेचनायामपि संस्कृत-साहित्यस्य प्रगतिः प्रशस्या । भारत-भारत्याः संस्कृतस्य आधुनिक-परिप्रकाशः भारतीय-सभ्यतायाः भारतीय-संस्कृतेश्च दीप्तिमयं निदर्शनं भूत्वा सुचिरं स्थास्यति । वैश्विक-चेतनायाः स्रोतसि आधुनिक-संस्कृतसाहित्यस्य सम्भावना नितरां समुज्ज्वला । परिशेषे एतद् वक्तुं समीचीनं भवति :  
प्राचीनत्वं समाश्रित्य नूतनत्वं वितन्वती 
वहन्ती सन्ततं धारा भाति भारत-भारती  (प्रास्ताविकम्/ मातृगीतिकाञ्जलिः, पृ.१७) 
 * * 
सहायक पुस्तकादि -सूची : 
अभिराज-राजेन्द्रमिश्रः (सम्पा.), कल्पवल्ली (समकालिक-संस्कृत-काव्यसङ्कलना), 
  साहित्य अकादमीनवदिल्ली२०१३.
अभिराज-राजेन्द्रमिश्रः (सं),  विंशशताब्दी-संस्कृतकाव्यामृतम्  (आधुनिक-काव्यसङ्कलनम्), 
  दिल्ली संस्कृत अकादमी,२०००.  
अभिराज-राजेन्द्रमिश्रःअभिराज-यशोभूषणम् (अभिनव-काव्यशास्त्रम्), 
   वैजयन्त-प्रकाशनइलाहाबाद२००६.  
राधावल्लभ त्रिपाठी (सम्पा.), षोड़शी (आधुनिक संस्कृत काव्यसङ्कलना), 
  साहित्य अकादमीनवदिल्ली 
सत्यव्रत-शास्त्रीश्रीगुरुगोविन्दसिंह-चरितम्,  साहित्य भण्डारमेरठ१९८४
सत्यव्रत-शास्त्रीशर्मण्यदेशः सुतरां विभाति,  अखिल भारतीय संस्कृत परिषद्लखनऊ१९७६
रामकरण-शर्मासर्वमङ्गलानाग प्रकाशकदिल्ली१९९६.   
अशोक-पटेल (सं)आधुनिक संस्कृत की नयी दिशाएँ  (हर्षदेवमाधव-अभिनन्दनग्रन्थ),  
  पार्श्व पब्लिकेशन् अहमदाबाद२०१५.
हर्षदेवमाधवःऋषेः क्षुब्धे चेतसि (हाइकु-तान्का-सिजो-संग्रहः), 
  संप्रीतेश-शुक्लाश्रीवाणी अकादमीगुजरात२००४.
प्रवीण-पाण्ड्या (सम्पा.), निवेशः शैलानाम् (हर्षदेवमाधव-काव्यग्रन्थावली-), पार्श्व पब्लिकेशन्,
  अहमदाबाद२०१५.   
हर्षदेव-माधवःनखदर्पणः,  श्रीवाणी अकादमीचान्दखेड़ा,  गुजरात२००८.
हरेकृष्ण-मेहेरः, हासितास्या वयस्या (हाइकु-सिजो-तान्का-कविता-सङ्कलना) :  
श्रीनिवास-रथःतदेव गगनं सैव धरा (आधुनिक-गीतिकाव्यम्), 
   राष्ट्रिय-संस्कृत-संस्थानम्नवदिल्ली१९९५
हरेकृष्ण-मेहेरः, मातृगीतिकाञ्जलिः (आधुनिक-गीतिकाव्यम्), कलाहाण्डि-लेखक-कलापरिषद्
  भवानीपाटना१९९७.
* आधुनिक-संस्कृतसाहित्यं प्रति हरेकृष्ण-मेहेरस्य अवदानम्  
  (अस्रमजस्रम्, मौनव्यञ्जना, पुष्पाञ्जलि-विचित्रा,   सौन्दर्य-सन्दर्शनम्, जीवनालेख्यम्,
  सूक्ति-कस्तूरिका चेत्यादीनि काव्यानि) : जालस्थानम्
गोविन्दचन्द्र-पाण्डेयःभागीरथीराका प्रकाशनइलाहाबाद२००२.   
राधावल्लभ-त्रिपाठीलहरीदशकम्प्रतिभा प्रकाशनदिल्ली२००३.  
राधावल्लभ-त्रिपाठीगीतधीवरम्संस्कृत-परिषद्सागर-विश्वविद्यालयःसागर१९९६.  
रमाकान्त-शुक्लःभाति मे भारतम्देववाणी परिषद्दिल्ली२०१०
हरिदत्त-शर्माउत्कलिकाआञ्जनेय प्रकाशनइलाहाबाद१९८९.  
प्रभुदत्त-शास्त्रीगणपति-सम्भवम्अर्चना प्रकाशननागपुर, महाराष्ट्रम्.  
केशवचन्द्र-दाशःईशालोकभाषा-प्रचार-समितिःपुरी१९९२
केशवचन्द्र-दाशःऋतम्देववाणी परिषद्दिल्ली१९८८.  
केशवचन्द्र-दाशःअञ्जलिःलोकभाषाप्रचार-समितिःपुरी१९९०
प्रभुनाथ-द्विवेदीअन्तर्ध्वनिःसम्पूर्णानन्द-संस्कृत-विश्वविद्यालयःवाराणसी२००५.
बनमाली बिश्वालःनीरवस्वनःपद्मजा प्रकाशनप्रयाग१९९८.  
बनमाली बिश्वालःप्रियतमापद्मजा प्रकाशनप्रयाग१९९९.
रवीन्द्रकुमार-पण्डाबलाकाअर्वाचीन-संस्कृतसाहित्य-परिषद्बरोदा२००६
हीरालाल-शुक्लः (सम्पा.),  हिस्ट्री अफ् मडर्न् संस्कृत् लिट्रेचर्
  निउ भारतीय बुक् कर्पोरेशन्दिल्ली२००२.  
रवीन्द्रकुमार-पण्डाएसेज् अन् मडर्न् संस्कृत् पोएट्रिभारतीय कला प्रकाशनदिल्ली२००९.  
राधावल्लभ-त्रिपाठीसंस्कृतसाहित्य बीसवीं शताब्दीराष्ट्रिय-संस्कृत-संस्थानम्नवदिल्ली१९९९.
चन्द्रभूषण-झादिल्लीस्थाः विंशशताब्दीयाः संस्कृत-रचनाकाराःसंश्रीकृष्ण-सेमवालः
  दिल्ली संस्कृत अकादमी, दिल्ली 
आचार्य-बलदेव-उपाध्याय (प्रधान सम्पा.)संस्कृत वाङ्मय का बृहद् इतिहास (सप्तम खण्ड), 
  आधुनिक संस्कृत साहित्य का इतिहास,  सम्पाजगन्नाथ-पाठकउत्तरप्रदेश-संस्कृत-संस्थानम्
  लखनऊ २०००
राजेशकुमारी मिश्र (सम्पा.)त्रिवेणीकवि अभिराज राजेन्द्रमिश्रव्यक्तित्व एवं कृतित्व
  वैजयन्त प्रकाशनप्रयाग२००५.  
दृक् (समकालीन-संस्कृत-साहित्य-समीक्षात्मक-पत्रिकाISSN: 0976-447X), अङ्कः--३१
  दृग्-भारतीप्रयागः
* श्रद्धा (संस्कृत-शोधपत्रिका, ISSN: 2321-273X), संयुक्ताङ्कः -, २०१२-२०१३, मुख्यसम्पादक:  
हरेकृष्ण-मेहेरः,स्नातकोत्तर-संस्कृतविभागः,गङ्गाधरमेहेर-स्वयंशासित-महाविद्यालयः,सम्बलपुरम्,ओड़िशा.  पद्यबन्धा (समकालिक-संस्कृतकविता-पत्रिकाISSN: 2278-4888), स्पन्दः--
  वीणापाणि-संस्कृत-समितिःभोपालम्.  
संस्कृतमञ्जरीअप्रैल् २००७दिल्ली-संस्कृत-अकादमीकरोलबागदिल्ली.
लोकभाषासुश्रीः,फेब्रुआरी-मार्च २००६लोकभाषाप्रचार-समितिःशरधाबालिपुरी.
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डॉहरेकृष्ण-मेहेरः,
सेवानिवृत्तः वरिष्ठ उपाचार्यो मुख्यश्च
स्नातकोत्तर-संस्कृतविभागः
गङ्गाधर-मेहेर-स्वयंशासित-महाविद्यालयःसम्बलपुरम्ओड़िशा.
दूरभाषः - ९४३७३६२९६२.  -पत्रम् : meher.hk@gmail.com /
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Contributions of Dr. Harekrishna Meher to Sanskrit Literature:  
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